पहले परीक्षा में फेल हुआ, फिर नौकरी छूटी और घर जाते समय रेल में संदूक रह गया। इस बार मेरे साथ बड़ी बुरी बीती, कंगाली में आटा गीला हो गया।
कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना : जो मिल जाए उसी पर संतुष्ट रहना चाहिए।
कमजोर की जोरू सबकी सरहज गरीब की जोरू सबकी भाभी: कमजोर आदमी को कोई गौरव नहीं प्रदान करना, सब उसकी स्त्री से हँसी-मजाक करते हैं।
करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का : छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है।
करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत : जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने-झगड़ने में तेज हो।
खग जाने खग ही की भाषा : जो मनुष्य जिस स्थान या समाज में रहता है उसको उसी जगह या समाज के लोगों की बात समझ में आती है।
खर को गंग न्हवाइए तऊ न छोड़े छार : चाहे कितनी ही चेष्टा की जाय पर नीच की प्रकृति नहीं सुधरती.
खरादी का काठ काटे ही से कटता है : काम करने ही से समाप्त होता है या ऋण देने से ही चुकता है।
खरी मजूरी चोखा काम : नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है।
खल की दवा पीठ की पूजा : दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
खलक का हलक किसने बंद किया है : संसार के लोगों का मुँह कौन बंद कर सकता है?
खाइए मनभाता, पहनिए जगभाता : अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए.
खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय : केवल रूप बदलने से गुण नहीं बदलता.
खाली दिमाग शैतान का घर : जो मनुष्य बेकार होता है उसे तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं.
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे : लज्जित होकर बहुत क्रोध करना.
खुदा गंजे को नाखून न दे : अनधिकारी को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.
खूंटे के बल बछड़ा कूदे : किसी अन्य व्यक्ति, मालिक या मित्र के बल पर शेखी बघारना.
खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो : जब एक प्रकृति या रुचि के दो मनुष्य मिल जाते हैं तब उनका समय बड़े आनंद से व्यतीत होता है।
खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी : दो मूर्खों का साथ, एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ.
खेत खाय गदहा मारा जाय जोलहा : जब अपराध एक व्यक्ति करे और दंड दूसरा पावे.
खेती खसम सेती : खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.
खेल खतम, पैसा हजम : सुखपूर्वक काम समाप्त हो जाने पर ऐसा कहते हैं.
खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का : काम कर्मचारी करते हैं और नाम अफसर का होता है।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया : बहुत परिश्रम करने पर थोड़ा लाभ होना.
खौरही कुतिया मखमली झूल : जब कोई कुरूप मनुष्य बहुत शौक-श्रृंगार करता है या सुन्दर वेश-भूषा धारण करता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
गंजी कबूतरी और महल में डेरा : किसी अयोग्य व्यक्ति के उच्च पद प्राप्त करने पर ऐसा कहते हैं.
गंजी यार किसके, दम लगाए खिसके : स्वार्थी मनुष्य किसी के साथ नहीं होते, अपना मतलब सिद्ध होते ही वे चल देते हैं.
गगरी दाना सूत उताना : ओछा आदमी थोड़ा धन पाकर इतराने लगता है।
गढ़े कुम्हार भरे संसार : कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं। एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.
गधा मरे कुम्हार का, धोबिन सती होय : जब कोई आदमी किसी ऐसे काम में पड़ता है जिससे उसका कोई संबंध नहीं तब ऐसा कहा जाता है।
गधे के खिलाये न पुण्य न पाप : कृतघ्न के साथ नेकी करना व्यर्थ है।
गये थे रोजा छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी : यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.
गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई : गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.
कंगाली में गीला आटा : धन की कमी के समय जब पास से कुछ और चला जाता है।
गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : जिसका काम हो वह अधिक परवाह न करे, किन्तु दूसरा आदमी अत्यधिक तत्परता दिखावे.
गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा : जिसके पास धन रहता है वह निश्चिंत रहता है।
गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध : अपनी जन्मभूमि में किसी विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है।
गाय गुण बछड़ा, पिता गुण घोड़, बहुत नहीं तो थोड़ै थोड़ : बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है।
गाल बजाए हूँ करैं गौरीकन्त निहाल : जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे : जब विपत्ति आने को होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।
गुड़ खाय गुलगुले से परहेज : कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना.
गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे : किसी को चाहे कुछ न दे, पर उससे मीठी बात तो करे.
गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी : यदि पास में धन होगा तो साथी या खाने वाले भी पास आएँगे.
गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया : जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता है तब ऐसा कहते हैं.
गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी : गुरु से कपट नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है।
गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है : अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं.
गैर का सिर कद्दू बराबर : दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता.
गों निकली, आँख बदली : स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है।
बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास में रहने पर भी किसी वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना.
गौरी रूठेगी अपना सोहाग लेगी, भाग तो न लेगी : जब कोई आदमी किसी नौकर को छुड़ा देने की धमकी देता है तब नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है।
ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती : कोई भी व्यक्ति अपनी चीज को बुरी नहीं कहता.
घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम : संकोच करने की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है।
घड़ी में तोला घड़ी में माशा : जो जरा-सी बात पर खुश और जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है।
घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते : मिलते हुए धन या वृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए.
घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते : अपने घर आने पर कोई बुरे आदमी को भी नहीं दुतकारता.
घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय : किसी निकटस्थ तपस्वी सन्त की पूजा न करके किसी साधारण साधु का आदर-सत्कार करना.
घर कर सत्तर बला सिर कर : ब्याह करने और घर बनबाने में बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है।
घर का भेदी लंका ढाये : आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।
घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित आदर नहीं होता.
घर घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयाँ होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।
घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने : झूठे दिखावे पर उक्ति.
घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है।
घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति.
घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए