दूसरा अध्याय - शब्दों का वर्गीकरण / कामताप्रसाद गुरू
90. किसी वस्तु के विषय में मनुष्य की भावनाएँ जितने प्रकार की होती हैं, उन्हें सूचित करने के लिए शब्दों के उतने ही भेद होते हैं और उनके उतने ही रूपांतर भी होते हैं।
मान लो कि हम पानी के विषय में विचार करते हैं, तो हम ‘पानी’ या उसके और किसी समानार्थक शब्द का प्रयोग करेंगे। फिर यदि हम पानी के संबंध में कुछ कहना चाहें तो हमें ‘गिरा’ या कोई दूसरा शब्द कहना पड़ेगा। ‘पानी’ और ‘गिरा’ दो अलग-अलग प्रकार के शब्द हैं, क्योंकि उनका प्रयोग अलग-अलग है।
‘पानी’ शब्द एक पदार्थ का नाम सूचित करता है और ‘गिरा’ शब्द से हम उस पदार्थ के विषय में कुछ विधान करते हैं।
व्याकरण में पदार्थ का नाम सूचित करनेवाले शब्द को संज्ञा कहते हैं। और उस पदार्थ के विषय में विधान करनेवाले शब्द को क्रिया कहते हैं।
‘पानी’ शब्द संज्ञा और ‘गिरा’ शब्द क्रिया है।
‘पानी’ शब्द के साथ हम दूसरे शब्द लगाकर एक दूसरा ही विचार प्रकट कर सकते हैं; जैसे - ‘मैला पानी बहा’। इस वाक्य में ‘पानी’ शब्द तो पदार्थ का नाम है और ‘बहा’ शब्द पानी के विषय में विधान करता है, परंतु ‘मैला’ शब्द न तो किसी पदार्थ का नाम सूचित करता है और न किसी पदार्थ के विषय में विधान ही करता है। ‘मैला’ शब्द पानी की विशेषता बताता है, इसलिए वह एक अलग ही जाति का शब्द है।
पदार्थ की विशेषता बतलानेवाले शब्द को व्याकरण में विशेषण कहते हैं।
‘मैला’ शब्द विशेषण है।
‘मैला पानी अभी बहा’ - इस वाक्य में ‘अभी’ शब्द न संज्ञा है, न क्रिया और न विशेषण, वह ‘बहा’ क्रिया की विशेषता बतलाता है, इसलिए वह एक दूसरी ही जाति का शब्द है और उसे क्रिया- विशेषण कहते हैं। इसी तरह वाक्य के प्रयोग के अनुसार शब्दों के और भी भेद होते हैं।
91. प्रयोग के अनुसार शब्दों की भिन्न-भिन्न जातियों को शब्दभेद कहते हैं।
शब्दों की भिन्न-भिन्न जातियाँ बताना उनका वर्गीकरण कहलाता है।
अपने विचार प्रकट करने के लिए हमें भिन्न-भिन्न भावनाओं के अनुसार एक शब्द को बहुधा कई रूपों में कहना पड़ता है।
मान लो कि हमें ‘घोड़ा’ शब्द का प्रयोग करके उसके वाच्य प्राणी की संख्या का बोध कराना है तो हम यह घुमाव की बात न कहेंगे कि घोड़ा नाम के दो या अधिक जानवर, किंतु ‘घोड़ा’ शब्द के अंत्य ‘आ’ के बदले ‘ए’ करके ‘घोड़े’ शब्द का प्रयोग करेंगे।
‘पानी गिरा’ इस वाक्य में यदि हम ‘गिरा’ शब्द से किसी और काल (समय) का बोध कराना चाहें तो हमें गिरा के बदले ‘गिरेगा’ या ‘गिरता है’ कहना पड़ेगा। इसी प्रकार और और शब्दों के भी रूपांतर होते हैं।
शब्द के अर्थ में हेर-फेर करने के लिए उस (शब्द) के रूप में जो हेर-फेर होता है, उसे रूपांतर कहते हैं
92. एक पदार्थ के नाम के संबंध से बहुधा दूसरे पदार्थों के नाम रखे जाते हैं, इसलिए एक शब्द से कई नए शब्द बनते हैं; जैसे -
‘दूध से दूधवाला’, ‘दुधार’, ‘दुधिया’ इत्यादि।
कभी-कभी दो या अधिक शब्दों के मेल से एक नया शब्द बनता है; जैसे -
गंगाजल, चैकोन, रामपुर, त्रिाकालदर्शी इत्यादि।
एक शब्द से दूसरा नया शब्द बनाने की प्रक्रिया को व्युत्पत्ति कहते हैं।
93. वाक्य के प्रयोग के अनुसार शब्दों के आठ भेद होते हैं -
(1) वस्तुओं के नाम बतानेवाले शब्द..........संज्ञा।
(2) वस्तुओं के विषय में विधान करनेवाले शब्द..........क्रिया।
(3) वस्तुओं की विशेषता बतानेवाले शब्द..........विशेषण।
(4) विधान करनेवाले शब्दों की विशेषता बतानेवाले शब्द..........क्रियाविशेषण।
(5) संज्ञा के बदले आनेवाले शब्द..........सर्वनाम।
(6) क्रिया से नामार्थक शब्दों का संबंध सूचित करनेवाले शब्द..........संबंधसूचक।
(7) दो शब्दों वा वाक्यों को मिलानेवाले। शब्द..........समुच्चयबोधक।
(8) केवल मनोविकार सूचित करनेवाले शब्द..........विस्मयादिबोधक।
(क) नीचे लिखे वाक्यों में आठों शब्दभेदों के उदाहरण दिए जाते हैं -
‘अरे! सूरज डूब गया और तुम अभी इसी गाँव के पास फिर रहे हो!’
‘अरे’; - विस्मयादिबोधक है। यह शब्द केवल मनोविकार सूचित करता है। (यदि हम इस शब्द को वाक्य से निकाल दें तो वाक्य के अर्थ में कुछ भी अंतर न पड़ेगा।)
सूरज - संज्ञा है; क्योंकि यह शब्द एक वस्तु का नाम सूचित करता है।
डूब गया - क्रिया है; क्योंकि इस शब्द से हम सूरज के विषय में विधान करते हैं। और - समुच्चयबोधक है। यह शब्द दो वाक्यों को जोड़ता है।
(1) सूरज डूब गया।
(2) तुम अभी इसी गाँव के पास फिर रहे हो।
तुम - सर्वनाम है; क्योंकि वह नाम के बदले आया है।
अभी - क्रियाविशेषण है और ‘फिर रहे हो’ क्रिया की विशेषता बतलाता है।
इसी - विशेषण है; क्योंकि वह गाँव की विशेषता है।
गाँव - संज्ञा है। के - शब्दांश (प्रत्यय) है, क्योंकि वह ‘गाँव’ शब्द के साथ आकर सार्थक होता है। पासμसंबंधसूचक है। यह शब्द ‘गाँव’ का संबंध ‘फिर रहे हो’ क्रिया से मिलाता है।
फिर रहे हो - क्रिया है।
94. रूपांतर के अनुसार शब्दों के दो भेद होते हैं -
(1) विकारी, (2) अविकारी।
(1) जिस शब्द के रूप में कोई विकार होता है, उसे विकारी शब्द कहते हैं। जैसे - लड़का - लड़के, लड़कों, लड़की इत्यादि।
देख - देखना, देखा, देखूँ, देखकर इत्यादि।
(2) जिस शब्द के रूप में कोई विकार नहीं होता, उसे अविकारी शब्द या अव्यय कहते हैं; जैसे - परंतु, अचानक, बिना, बहुधा, साथ इत्यादि।
95. संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं, और क्रिया-विशेषण, संबंधसूचक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक अविकारी शब्द वा अव्यय हैं।
(टि. - हिंदी के अनेक व्याकरणों में संस्कृत की चाल पर शब्दों के तीन भेद माने गए हैं - (1) संज्ञा, (2) क्रिया, (3) अव्यय। संस्कृत में प्रातिपदिक 1, धातु और अव्यय के नाम से शब्दों के तीन भेद माने गए हैं, और ये भेद शब्दों के रूपांतर के आधार पर किए गए हैं। व्याकरण में मुख्यतः रूपांतर ही का विचार किया जाता है; परंतु जहाँ शब्दों के केवल रूपों से उनका परस्पर संबंध प्रकट नहीं होता वहाँ उनके प्रयोग वा अर्थ का भी विचार किया जाता है : संस्कृत रूपांतरशील भाषा है; इसलिए उसमें शब्दों का प्रयोग वा अर्थ बहुधा उनके रूपों ही से जाना जाता है। यही कारण है कि संस्कृत के शब्दों के उतने भेद नहीं माने गए, जिनते अँगरेजी में और उसके अनुसार हिंदी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में माने जाते हैं।
हिंदी के शब्द के रूप से उसका अर्थ वा प्रयोग सदा प्रकट नहीं होता; क्योंकि वह संस्कृत के समान पूर्णतया रूपांतरशील भाषा नहीं है। हिंदी के कभी-कभी बिना रूपांतर के, एक ही शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न शब्दभेदों में होता है; जैसे -
वे लड़के साथ खेलते हैं (क्रियाविशेषण)।
लड़का बाप के साथ गया (संबंधसूचक)।
विपत्ति में कोई साथ नहीं देता (संज्ञा)।
इन उदाहरणों से जान पड़ता है कि हिंदी में संस्कृत के समान केवल रूप के आधार पर शब्दभेद मानने से उनका ठीक-ठीक निर्णय नहीं हो सकता।
हिंदी में कोई-कोई वैयाकरण शब्दों के केवल पाँच भेद मानते हैं - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय।
वे लोग अव्ययों के भेद नहीं मानते और उनमें भी विस्मयादिबोधक को शामिल नहीं करते। जो लोग शब्दों के केवल तीन भेद (संज्ञा, क्रिया और अव्यय) मानते हैं, उनमें से कोई-कोई भेदों के उपभेद मानकर शब्दभेदों की संख्या तीन से अधिक कर देते हैं।
किसी-किसी के मत में उपसर्ग और प्रत्यय भी शब्द हैं और वे इनकी गणना अव्ययों में करते हैं। इस प्रकार शब्दभेदों की संख्या में बहुत मतभेद हैं।)
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1. विभक्ति (प्रत्यय) लगने के पूर्व संज्ञा, सर्वनाम वा विशेषण का मूल रूप।
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अँगरेजी में भी (जिसके अनुसार हिंदी में आठ शब्दभेद मानने की चाल पड़ी है) इसके विषय में वैयाकरण एकमत नहीं। उन लोगों में किसी ने दो, किसी ने आठ और किसी ने नौ तक भेद माने हैं। इस मतभेद का कारण यह है कि ये वर्गीकरण पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर नहीं किए गए। कुछ विद्वानों ने इन शब्द भेदों को तर्कसम्मत आधार देने की चेष्टा की है, जिसका एक उदाहरण नीचे दिया जाता हैμ -
(1) भावनात्मक शब्द
(1) वाक्य का उद्देश्य होनेवाले शब्द...........संज्ञा।
(2) विधेय होनेवाले शब्द...........क्रिया।
(3) संज्ञा का धर्म बतानेवाले शब्द...........विशेषण।
(4) क्रिया का धर्म बतानेवाले शब्द...........क्रियाविशेषण।
(2) संबंधात्मक शब्द
(5) संज्ञा का संबंध वाक्य से बतानेवाले शब्द........... संबंधसूचक।
(6) वाक्य का संबंध वाक्य से बतानेवाले शब्द........... समुच्चयबोधक।
(7) अप्रधान (परंतु उपयोगी) शब्दभेद.......... सर्वनाम।
(8) अव्याकरणीय उद्गार...........विस्मयादिबोधक।
(शब्दों के जो आठ भेद अँगरेजी भाषा के वैयाकरणों ने किए हैं, वे निरे अनुमानमूलक नहीं हैं। भाषा में उन अर्थों के शब्दों की आवश्यकता होती है और प्रायः प्रत्येक उन्नत भाषा में आप ही आप उनकी उत्पत्ति होती है। भाषाशास्त्रिायों में यह सिद्धांत सर्वसम्मत है कि किसी भी भाषा में शब्दों के आठ भेद होते हैं। यद्यपि इन भेदों में तर्कसम्मत वर्गीकरण के नियमों का पूरा पालन नहीं हो सकता और इनके लक्षण पूर्णतया निर्दोष नहीं हो सकते, तथापि व्याकरण के ज्ञान के लिए इन्हें जानने की आवश्यकता होती है। व्याकरण के द्वारा विदेशी भाषा सीखने में इन भेदों के ज्ञान से बड़ी सहायता मिलती है। वर्गीकरण का उद्देश्य यही है कि किसी भी विषय की बात जानने में स्मरणशक्ति को सहायता मिले। इसीलिए विशेष धर्मों के आधार पर पदार्थों के वर्ग किए जाते हैं।
किसी-किसी का मत है कि हिंदी में अँगरेजी व्याकरण की ‘छूत’ न घुसनी चाहिए। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि जिस प्रकार हिंदी से संस्कृत का संबंध नहीं टूट सकता, उसी प्रकार अँगरेजी से उसका वर्तमान संबंध टूटना, इष्ट होने पर भी, शक्य नहीं। अँगरेज लोगों ने अपने सूक्ष्म विचार और दीर्घ उद्योग से ज्ञान की प्रत्येक शाखा में जो समुन्नति की है, उसे हम लोग सहज ही में नहीं भुला सकते।
यदि संस्कृत में शब्दों के आठ भेद नहीं माने गए हैं, तो हिंदी में उन्हें उपयोगिता की दृष्टि से मानने में कोई हानि नहीं, किंतु लाभ ही है। यहाँ अब यह प्रश्न हो सकता है कि जब हम संस्कृत के अनुसार शब्दभेद नहीं मानते तब फिर संस्कृत के पारिभाषिक शब्दों का उपयोग क्यों करते हैं? इसका उत्तर यह है कि ये शब्द हिंदी में प्रचलित हैं और हम लोगों को इनका हिंदी अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। इसलिए बिना किसी विशेष कारण के प्रचलित शब्दों का त्याग उचित नहीं। किसी-किसी पुस्तक में ‘संज्ञा’ के लिए ‘नाम’ और ‘सर्वनाम’ के लिए ‘संज्ञाप्रतिनिधि’ शब्द आए हैं और कोई-कोई लोग ‘अव्यय’ के लिए ‘निपात’ शब्द का प्रयोग करते हैं। परंतु प्रचलित शब्दों को इस प्रकार बदलने से गड़बड़ के सिवा कोई लाभ नहीं। इस पुस्तक में अधिकांश पारिभाषिक शब्द ‘भाषाभास्कर’ से लिए गए हैं, क्योंकि निर्दोष न होने पर भी वह पुस्तक बहुत दिनों से प्रचलित है और उसके पारिभाषिक शब्द हम लोगों के लिए नए नहीं हैं।)
96 व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं -
(1) रूढ़, (2) यौगिक।
(1) रूढ़ उन शब्दों को कहते हैं, जो दूसरे शब्दों के योग से नहीं बने; जैसे -
नाक, कान, पीला, झट, पर इत्यादि।
(2) जो शब्द दूसरे शब्दों के योग से बनते हैं उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं; जैसे
कतरनी, पीलापन, दूधवाला, झटपट, घुड़साल इत्यादि।
(सू.μयौगिक शब्दों में ही सामासिक शब्दों का समावेश होता है।) अर्थ के अनुसार यौगिक शब्दों का एक भेद योगरूढ़ कहाता है, जिससे कोई विशेष अर्थ पाया जाता है; जैसे -
लम्बोदर, गिरिधारी, जलद, पंकज इत्यादि।
‘पंकज’ शब्द के खंडों (पंक़ज) का अर्थ ‘कीचड़ से उत्पन्न’ है, पर उससे केवल कमल का विशेष अर्थ लिया जाता है।
(सू. -हिंदी व्याकरण की कई पुस्तकों में ये सब भेद केवल संज्ञाओं के माने गए हैं और उनमें उपसर्गयुक्त संज्ञाओं के उदाहरण नहीं दिए गए हैं। हिंदी में यौगिक शब्द उपसर्ग और प्रत्यय दोनों के योग से बनते हैं और उनमें संज्ञाओं के सिवा दूसरे शब्दभेद भी आते हैं (दे. 198वाँ अंक)। इस विषय का सविस्तृत विवेचन दूसरे भाग के आरंभ में शब्दसाधन के व्युत्पत्ति प्रकरण में किया जायगा।