आ2 1. पूर्वप्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होने वाला वर्ण जो शब्दों के साथ संयुक्त होकर निम्नलिखित विशिष्टताएँ उत्पन्न करता है- (अ) 'तक' या 'पर्यंत', जैसे- आक्षितिज, आकंठ आदि (ब) 'आदि' से 'अंत' तक, जैसे- आमरण, आजन्म आदि (स) 'अधिक', 'लगभग' आदि का सूचक, जैसे- आरोहण, आभूषण, आभार आदि 2. कुछ शब्दों में विपरीत होने का अर्थबोधक बनता है, जैसे- आरोग्य, आगमन आदि 3. प्रत्यय के रूप में 'युक्त' और 'वाला' का अर्थ देता है, जैसे- दोमंज़िला, दोमुँहाँ आदि 4. प्रत्यय जो विशेषण तथा संज्ञा के रूप में लगकर स्त्रीलिंग रूप बनाता है, जैसे- शिष्य से शिष्या, कमल से कमला आदि।
आँ [अव्य.] 1. विस्मयसूचक शब्द, जैसे- आँ-आँ करना 2. अन्यमनस्कता के भाव से एकाएक बाहर आने पर कहा जाने वाला शब्द।
आँक [सं-पु.] 1. आकलन; मूल्य आदि का निर्धारण 2. अक्षर; चिह्न 3. पहिए की धुरी डालने का एक ढाँचा।
आँकड़ा [सं-पु.] 1. तथ्यों की गणना 2. अदद 3. अंक 4. फंदा; पाश; (हुक) 5. पशुओं का एक रोग।
आँकड़ेबाज़ (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह जो हर मामले में आँकड़ों पर ज़ोर देता है 2. तथ्यों पर बहुत अधिक ध्यान देने वाला व्यक्ति।
आँकड़ेबाज़ी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. आँकड़ों पर ज़ोर देने की क्रिया 2. सांख्यिकी को महत्व देना।
आँकना (सं.) [क्रि-स.] 1. मूल्यांकन करना; तौलना; अंदाज़ या अनुमान लगाना; अनुमान करना 2. निशान लगाना 3. {ला-अ.} आज़माना।
आँख (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शरीर का वह अंग विशेष जिससे देखा जाता है; नेत्र; नयन 2. सुई का छिद्र 3. ईख की गाँठ पर स्थित अँखुआ; अंकुर 4. परख; पहचान 5. ध्यान 6. मोर पंख पर आँख की तरह का चिह्न। [मु.] -आना : आँख में लाली व सूजन होना। -का तारा : बहुत प्रिय होना। -खुलना : जागना; वास्तविकता से अवगत होना; भ्रम दूर होना। -दिखाना : गुस्सा प्रकट करना। -मारना : एक आँख की पलक झपकाकर इशारा करना जो प्रायः शरारतपूर्ण होता है। -लगना : 1. नींद आना 2. प्रेम होना। -लड़ना : प्रेम होना। आँखें खोलना : परिस्थिति से परिचित होना। आँखें चुराना : सामने न आना। आँखें डबडबाना : आँखों में आँसू भर आना। आँखें फेरना : प्रतिकूल होना; पहले जैसी कृपा न रखना। आँखें बंद होना : मृत्यु होना। आँखें बिछाना : प्रेम से स्वागत करना; प्रेमपूर्वक प्रतीक्षा करना। आँखों पर परदा पड़ना : भ्रम होना; अज्ञान या अंधकार छाना। आँखों में चरबी छाना : घमंड से ध्यान न देना। आँखों में धूल झोंकना : धोखा देना। आँखों में समाए रहना : हृदय में बसना; प्रिय होना।
आँखमिचौनी [सं-स्त्री.] एक खेल जिसमें एक बच्चे की आँखों पर पट्टी बाँध कर अन्य बच्चे छुप जाते हैं और फिर पट्टी हटा कर वह बच्चा उन्हें ढूँढ़ता है; लुका-छिपी; आँखमिचौली, जैसे- चाँदनी रात या धूप में सूर्य या चंद्रमा का बादलों में छिपना और निकलना। [मु.] -करना : एक-दूसरे को झाँसा देना; हेराफेरी करना; कहीं छिपना और प्रकट होना।
आँखमिचौली [सं-स्त्री.] दे. आँखमिचौनी।
आँगन (सं.) [सं-पु.] मकान की सीमा में आने वाला वह खुला स्थान जिसे घर के कामों के लिए उपयोग में लाया जाता है; अँगना।
आँगुल [सं-पु.] दे. अंगुल।
आँघी (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की छलनी जिसे महीन कपड़े या जाली से मढ़ा जाता है।
आँच [सं-स्त्री.] 1. आग की लौ; ताप; गरमी 2. {ला-अ.} अहित; संकट; हानि। [मु.] -आना : हानि होना, प्रभावित होना।
आँचल (सं.) [सं-पु.] साड़ी या दुपट्टे आदि के दोनों छोरों के पास का भाग; पल्ला। [मु.] -फैलाना : दीनतापूर्वक माँगना। -में बाँधना : वश में रखना; कभी न भूलना।
आँजन (सं.) [सं-पु.] अंजन; काजल; सुरमा।
आँजना (सं.) [क्रि-स.] आँखों में अंजन या काजल लगाना।
आँजनी (सं.) [सं-स्त्री.] काजल या सुरमा रखने का छोटा पात्र; डिबिया; सीप; कजरौटा।
आँठी [सं-स्त्री.] 1. गुठली; गाँठ 2. नवोढ़ा के स्तन; उठते हुए स्तन 3. दही का थक्का।
आँड़ी [सं-स्त्री.] 1. अंडकोश 2. गाँठ 3. पहिए की सामी 4. आँठी; गुठली या उसी की तरह की कोई गोल कड़ी चीज़ 5. गाँठ के रूप में होने वाला कंद, जैसे- प्याज़, लहसुन की आँड़ी।
आँत [सं-स्त्री.] प्राणियों के पेट की वह लंबी नली जिसमें उसके द्वारा खाई गई वस्तुओं का चयापचय होता है; अँतड़ी; आंत्र। [मु.] -कुलकुलाना : अत्यंत भूख लगना।
आँधी (सं.) [सं-स्त्री.] धूल के साथ बहुत तेज़ चलने वाली हवा; झंझावात; तूफ़ान।
आँधी-पानी [सं-पु.] आँधी और पानी का एक साथ आना; तूफ़ान; बवंडर।
आँय-बाँय-शाँय (सं.) [वि.] 1. व्यर्थ का; फ़ालतू का 2. बिना सिर-पैर का; असंबद्ध।
आँव [सं-पु.] 1. अपच के चलते होने वाला एक उदर-रोग जिससे ऐंठन और मरोड़ होती है और सफ़ेद लसलसा पदार्थ मल के साथ निकलता है 2. लसलसा मल।
आँवल (सं.) [सं-पु.] एक झिल्ली जिससे गर्भ में बच्चे लिपटे रहते हैं; खेड़ी; जेरी।
आँवला [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध वृक्ष 2. उक्त वृक्ष पर लगने वाला खट्टा फल जिसका अचार और मुरब्बा भी बनता है।
आँवाँ [सं-पु.] एक ख़ास तरह की भट्ठी जिसमें कच्ची ईंटें और मिट्टी के बरतन या गमले आदि पकाए जाते हैं।
आँसू [सं-पु.] 1. दुख, ख़ुशी या कष्ट के क्षणों में आँखों से बहने वाला पानी जैसा तरल पदार्थ; अश्रु 2. अश्क; लोर। [मु.] -पीकर रह जाना : कष्ट को मन ही मन क्रुद्ध होकर बर्दाश्त कर लेना। -पोंछना : ढाढस बँधाना; तसल्ली देना।
आँहड़ (सं.) [सं-पु.] बरतन; भाँड़ा; मिट्टी का बरतन।
आँहाँ [अव्य.] 1. मना करने का शब्द; निषेध सूचक शब्द 2. नहीं; न।