उतरंग (सं.) [सं-पु.] वह लकड़ी या पत्थर की पटरी जो दरवाज़े में चौखट के ऊपर लगी रहती है।
उतरन [सं-स्त्री.] 1. वह वस्त्र या कपड़ा जो किसी ने कुछ दिनों तक पहनने के बाद पुराना समझकर उतार या छोड़ दिया हो 2. उक्त प्रकार का कपड़ा जो किसी को दान के रूप में दिया जाए।
उतरना [क्रि-अ.] 1. नीचे आना 2. ह्रास होना; ढलना 3. अलग होना 4. निकलना; ढीला होना 5. फीका पड़ना 6. दूर होना या समाप्त होना (क्रोध, बुख़ार आदि का) 7. कुश्ती हेतु अखाड़े में पहलवान का आना 8. कसौटी पर खरा सिद्ध होना।
उतरवाना [क्रि-स.] 1. किसी को उतरने में मदद करना 2. प्रतिलिपि करवाना; नकल करवाना।
उतराई [सं-स्त्री.] 1. उतरने या उतारने की क्रिया या भाव 2. ऊपर से नीचे आने की क्रिया 3. नाव द्वारा नदी पार करने का किराया या मज़दूरी 4. सेतु-कर (महसूल) 5. 'चढ़ाई' के विपरीत।
उतराना (सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी वस्तु या मृत व्यक्ति का पानी के ऊपर तिर आना; तैरना 2. उबलाना; उफनाना 3. विपत्ति या संकट से छुटकारा पाना।
उतरायल [सं-पु.] उतरन। [वि.] अच्छी तरह पहन चुकने के बाद उतारा हुआ कपड़ा, गहना आदि।
उतराव [सं-पु.] रास्ते में पड़ने वाला उतार; ढाल।
उतार [सं-पु.] 1. उतरने की क्रिया या भाव 2. परिमाण, मान आदि की क्रमशः कम होने की स्थिति, जैसे- नदी, बाज़ार-भाव का उतार 3. ढलान 4. समाप्ति की ओर, जैसे- सरदी का उतार 5. वेग कम करने में सहायक, जैसे- भाँग का उतार खटाई है।
उतार-चढ़ाव [सं-पु.] 1. उतरना और चढ़ना; ढलान और चढ़ाई 2. तल की ऊँचाई-निचाई 3. {ला-अ.} भली-बुरी स्थितियाँ; अनुकूल-प्रतिकूल अवस्थाएँ 4. किसी वस्तु के मान या मूल्य में आने वाला परिवर्तन; कमी-वृद्धि।
उतारन [सं-पु.] 1. पहना हुआ पुराना कपड़ा जो किसी और को (भिक्षुक, निर्धन आदि को) पहनने के लिए दिया जाता है 2. न्योछावर 3. निकृष्ट वस्तु।
उतारना (सं.) [क्रि-स.] 1. ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर लाना 2. नदी के पार पहुँचाना 3. प्रतिलिपि या प्रतिरूप बनाना; नकल करना 4. पहनी हुई चीज़ अलग करना, जैसे- कमीज़ उतारना 5. जादू-टोने को तंत्र-मंत्र की शक्ति से हटाना 6. निकाल लेना (दही या दूध की मलाई) 7. लगी या चिपकी वस्तु को अलग करना; उचाड़ना।
उतारा [सं-पु.] 1. नदी आदि से पार उतरने की क्रिया या भाव 2. किसी स्थान पर उतर कर ठहरने की स्थिति; डेरा या पड़ाव।
उतारू [वि.] तुला हुआ; उद्यत; आमादा।
उतावला [वि.] किसी कार्य को बिना समझे जल्दी से जल्दी करने को आतुर; बेसब्र; जल्दबाज़।
उतावलापन [सं-पु.] जल्दबाज़ी; हड़बड़ी।
उतावली [सं-स्त्री.] किसी काम को जल्द करने की हड़बड़ी; बेचैनी; अधीरता; जल्दबाज़ी।
उत् (सं.) [पूर्वप्रत्य.] शब्दों के पहले लग कर ऊपर, अतिक्रमण, उत्कर्ष, प्राबल्य, प्राधान्य, अभाव, विकास, शक्ति तथा उत्साह आदि अर्थ की सूचना देता है।
उत्कंठ (सं.) [सं-पु.] 1. तीव्र इच्छा; तीव्र अभिलाषा; लालसा 2. रतिक्रिया का एक आसन। [वि.] 1. जो कंठ (गरदन) उपर उठाए हुए हो; उद्ग्रीव 2. उत्कंठायुक्त; तीव्र इच्छा से युक्त।
उत्कंठा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्सुकता; तीव्र इच्छा; तीव्र अभिलाषा; लालसा 2. कामशास्त्र में रतिक्रिया का एक आसन 3. प्रिय मिलन की उत्सुकता।
उत्कंठातुर (सं.) [वि.] हार्दिक इच्छा या तीव्र अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए आतुर, व्याकुल या बेचैन।
उत्कंठित (सं.) [वि.] उत्सुक और अधीर; उत्कंठा या चाव से भरा हुआ; जिसके मन में कोई अभिलाषा हो; अतिउत्साहित।
उत्कंठिता (सं.) [सं-स्त्री.] प्रिय मिलन की तीव्र अभिलाषा वाली (उत्कंठातुर) नायिका; संकेत-स्थान पर प्रिय के न मिलने पर चिंतायुक्त नायिका।
उत्कंप (सं.) [सं-पु.] कँपकँपी; कंपन; थरथराहट।
उत्कच (सं.) [वि.] जिसके बाल खड़े हों; खड़े केशवाला।
उत्कट (सं.) [वि.] 1. जो परिमाण, मूल्य, गुण आदि की दृष्टि से अत्यधिक हो, जैसे- उत्कट विद्वान, उत्कट योद्धा आदि; प्रबल; (इंटेंस) 2. जो प्रभाव, स्वभाव आदि की दृष्टि से बहुत उग्र या तीव्र हो, जैसे- उत्कट स्वभाव।
उत्कर्ष (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर जाने या उठने की क्रिया या भाव 2. उन्नति; विकास; समृद्धि।
उत्कर्षक (सं.) [वि.] उत्कर्ष करने वाला; उन्नति या समृद्धि करने वाला; उन्नायक।
उत्कर्षता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. श्रेष्ठता; उत्तमता 2. प्रचुरता; अधिकता; बढ़ती 3. समृद्धि।
उत्कर्षापकर्ष (सं.) [सं-पु.] उत्थान-पतन।
उत्कल (सं.) [सं-पु.] उड़ीसा राज्य का प्राचीन नाम; वर्तमान में ओड़िशा।
उत्कलन (सं.) [सं-पु.] 1. बंधन से मुक्त होना; छूटना 2. फूलों आदि का खिलना या विकसित होना 3. लहराना।
उत्कलिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्कंठा; उत्सुकता 2. फूल की कलिका 3. तरंग; लहर 4. लंबे लंबे समासयुक्त गद्य।
उत्कलित (सं.) [वि.] 1. खुला हुआ; मुक्त 2. खिला हुआ; विकसित 3. लहराता हुआ।
उत्कारिका (सं.) [सं-स्त्री.] फोड़ों आदि को पकाने या पीब निकालने के लिए उस पर चढ़ाया जाने वाला अलसी, रेंड़ी (एरंड) आदि का मोटा लेप; पुलटिस।
उत्कासन (सं.) [सं-स्त्री.] खखार कर गले को साफ़ करना; खखारना; उत्कास; उत्कासिका।
उत्कीर्ण (सं.) [वि.] लिखा हुआ; खुदा हुआ; छिदा हुआ।
उत्कीर्ण छपाई (सं.) [सं-स्त्री.] खुदे अक्षर-मुखों से छपाई का काम; ठप्पे द्वारा छपाई।
उत्कीर्णन (सं.) [सं-पु.] खोद कर अंकित करना।
उत्कीर्णित (सं.) [वि.] उत्कीर्ण किया हुआ; खुदा हुआ; छिदा हुआ।
उत्कीर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी की प्रशंसा करना 2. चिल्लाना; शोर 3. घोषणा।
उत्कुण (सं.) [सं-पु.] 1. उडुस; खटमल 2. काले रंग का एक बहुत छोटा स्वेदज (पसीने से पैदा हुआ) कीड़ा जो सिर के बालों में पड़ जाता है; जूँ।
उत्कूज [सं-पु.] 1. कोमल एवं मधुर ध्वनि वाला 2. कोयल की कुहुक।
उत्कृष्ट (सं.) [वि.] 1. श्रेष्ठ; उच्च कोटि का 2. उन्नत।
उत्कृष्टतम (सं.) [वि.] सबसे उत्तम या अच्छा; सर्वश्रेष्ठ; श्रेष्ठतम।
उत्कृष्टता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्कृष्ट होने की अवस्था, गुण या भाव; अच्छापन; बड़प्पन।
उत्केंद्र (सं.) [वि.] 1. अपने केंद्र से हटा हुआ; जो अपने मूल स्थान पर न हो 2. अनियमित।
उत्केंद्रक (सं.) [वि.] केंद्र से अलग या निकाला हुआ; केंद्र से हटा हुआ।
उत्केंद्रता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्केंद्र होने की अवस्था या भाव; केंद्र से अलग होना; च्युत होना; धुरी-हीनता।
उत्कोच (सं.) [सं-पु.] घूस; रिश्वत।
उत्कोचक (सं.) [सं-पु.] घूस लेने वाला; रिश्वत खानेवाला।
उत्क्रम (सं.) [सं-पु.] 1. उलटा क्रम 2. क्रमभंग 3. विपर्यय 4. क्रमिक उन्नति 5. ऊपर जाना।
उत्क्रमणीय (सं.) [वि.] 1. जिसका उत्क्रमण हो सके, किया जा सके या किया जाने को हो; उन्नति की ओर अग्रसर होने वाला 2. जिसका अतिक्रमण किया जा सके 3. प्रस्थान योग्य।
उत्क्रांत (सं.) [वि.] 1. ऊपर की ओर चढ़ने वाला 2. जिसका अतिक्रमण हुआ हो।
उत्क्रांति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. धीरे-धीरे उन्नति या पूर्णता की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति 2. अतिक्रमण; उल्लंघन 3. देह से जीवात्मा का प्रस्थान; मृत्यु; मौत।
उत्क्रोश (सं.) [सं-पु.] 1. हल्लागुल्ला; शोरगुल 2. उद्घोषणा 3. कुररी नामक पक्षी।
उत्क्लेदन (सं.) [सं-पु.] तर या नम करने या होने की क्रिया या भाव।
उत्क्षिप्त (सं.) [सं-पु.] वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में जिह्वा ऊपर की ओर उठकर उच्चारण स्थान को टक्कर मारकर झटके के साथ नीचे आती है, जैसे- ड़्, ढ़्। [वि.] 1. ऊपर की ओर फेंका या उछाला हुआ, जैसे- कै या वमन का बाहर निकलना 2. दूर फेंका हुआ।
उत्क्षेप (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की तरफ़ उछालने या फेंकने की क्रिया या भाव 2. परित्याग करना; दूर करना 4. कै; वमन।
उत्क्षेपक (सं.) [वि.] ऊपर उछालने या फेंकने वाला; दूर करने या हटाने वाला।
उत्क्षेपण (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर फेंकना; उछालना 2. वमन।
उत्खनन (सं.) [सं-पु.] 1. गड़ी या जमी हुई चीज़ को खोदना; खुदाई 2. खोदकर बाहर निकालना।
उत्खात (सं.) [सं-पु.] 1. गड्ढा; छेद; बिल 2. ऊबड़-खाबड़ ज़मीन; जड़ों से उखाड़ा हुआ पेड़, पौधा आदि। [वि.] 1. खोदने वाला 2. उखाड़ने वाला 3. नष्ट किया हुआ।
उत्खाता (सं.) [वि.] 1. खोदने वाला 2. उखाड़ने वाला 3. समूल नष्ट करने वाला।