कबुलवाना [क्रि-स.] 1. दबाव डालकर किसी से कोई बात कहलवाना 2. किसी को कोई बात स्वीकार करने या कबूलने में प्रवृत्त करना 3. किसी से कोई बात स्वीकार कराना।
कबूतर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. झुंड में रहने वाला एक पक्षी 2. परेवा की एक जाति 3. कपोत 4. पारावत।
कबूतरख़ाना (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कबूतर रखने या पालने का स्थान; कावुक 2. वह अड्डा जहाँ कबूतर पाले और उड़ाए जाते हैं 3. एक प्रकार की कई ख़ानों का दरबा जिसमें बहुत से कबूतर पाले या रखे जाते हैं।
कबूतरबाज़ी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कबूतर पालने, उड़ाने तथा लड़ाने का शौक; कपोत-क्रीड़ा 2. गैरकानूनी तरीके से व्यक्तियों को विदेश भेजने की क्रिया।
कबूतरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. मादा कबूतर 2. कपोती 3. {ला-अ.} सुंदर स्त्री; नर्तकी 4. एक प्रकार की गाली।
कबूद (फ़ा.) [वि.] नीला; आसमानी। [सं-पु.] 1. नीला रंग 2. बंसलोचन का एक भेद; नीलकंठी।
कबूदी (फ़ा.) [वि.] नीले रंग का; आसमानी।
कबूल (अ.) [सं-पु.] 1. कबूलने की क्रिया या भाव; स्वीकार; स्वीकृत; मंजूर।
कबूलना (अ.) [क्रि-स.] स्वीकार करना; इकरार करना; मान लेना।
कबूलसूरत (अ.) [वि.] 1. सुमुख; सुंदर चेहरे-मोहरे वाला 2. लावण्यानन; प्रियदर्शन 3. निर्दोष रूप; मान्य रूप से सुंदर।
कबूलियत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. स्वीकृति; मंजूरी 2. वह दस्तावेज़ जो पट्टा लेने वाला पट्टा देने वाले को उसकी शर्तों की स्वीकृति के रूप में देता है।
कबूली (अ.) [सं-स्त्री.] 1. चने की दाल और चावल से बनी हुई खिचड़ी 2. काजू, किशमिश और हरी सब्ज़ियाँ डालकर बनाया गया पुलाव।
कब्ज़ (अ.) [सं-पु.] 1. अधिकार 2. अवरोध 3. पकड़ 4. मल का आँतों में रुकना; पेट साफ़ न होना; कोष्ठबद्धता 5. अजीर्ण; अनाह।
कब्ज़ा (अ.) [सं-पु.] 1. अधिकार; दख़ल 2. पकड़; काबू; वश 3. दस्ता; मूठ 4. बाज़ू 5. कुश्ती का एक पेंच 6. लोहे या पीतल का वह पुरज़ा जिससे किवाड़ चौखट या इसी तरह की दो चीज़ें आपस में जोड़ी जाती हैं, फिर भी जोड़ के बिंदु से इधर-उधर घूम सकती हैं।
कब्ज़ादारी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] कब्ज़े में होने की अवस्था।
कब्ज़ाना (अ.) [क्रि-स.] 1. किसी दूसरे की संपत्ति आदि पर अधिकार करना; इख़्तियार करना 2. किसी को अपने वश में करना; काबू में करना 3. किसी को पकड़ना; गिरफ़्तार करना।
कब्ज़ियत (अ.) [सं-स्त्री.] कब्ज़ होने की अवस्था; पेट साफ़ न होने की स्थिति; कोष्ठबद्धता।
कब्ज़ुलवसूल (अ.) [सं-पु.] वह कागज़ जिसपर वेतन पाने वाले की भरपाई लिखी हुई हो; प्राप्तिपत्र; रसीद।
कब्र (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह गड्ढा जो शव को गाड़ने के लिए खोदा जाता है 2. उक्त गड्ढे के ऊपर स्मृति स्वरूप बनाया गया चबूतरा 3. समाधि भवन। [मु.] -में पैर लटके होना : मृत्यु के समीप होना।
कब्रगाह (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ शव गाड़े जाते हैं; कब्रिस्तान 2. समाधि स्थल।
कब्रघर (अ.+हिं.) [सं-पु.] 1. ऐसा घर जहाँ अनेक कब्रें हों 2. शवों को रखने का स्थान; कब्रगाह 3. कब्रिस्तान।
कब्रिस्तान (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. जहाँ बहुत से मुर्दे गड़े हों अथवा गाड़े जाते हों 2. समाधि स्थल अथवा क्षेत्र 3. श्मशान।
कभी-कभार [अव्य.] यदा-कदा; कभी-कभी; एकाध-बार।
कभी-कभी [अव्य.] रह-रह कर; किसी समय; किसी अवसर पर; कुछ समयांतराल पर।
कमंगर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कमान या धनुष बनाने वाला कारीगर; कमानसाज़ 2. खिसकी हुई हड्डियों को बैठाने वाला 3. चित्रकार; चितेरा; मुसौवर।
कमंगरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कमान बनाने का पेशा या हुनर 2. खिसकी हुई हड्डियों को बैठाने का काम 3. चित्रकारी; मुसौवरी 4. कार्यकुशलता; कारीगरी।
कमंचा (फ़ा.) [सं-पु.] बढ़ई के कमान की तरह का एक टेढ़ा औज़ार जिसमें बँधी रस्सी को बरमे में लपेटकर घुमाया जाता है।
कमंडल (सं.) [सं-पु.] ताँबे, पीतल आदि का बना ऐसा लोटेनुमा पात्र जिसे साधु-संन्यासी जल भरने के लिए प्रयोग करते हैं।
कमंडली [वि.] कमंडल रखने वाला; साधु; वैरागी 2. पाखंडी; आडंबरी।
कमंद (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. फंदा; पाश 2. एक फंदेदार रस्सी जिसे फेंककर जंगली जानवर फँसाए जाते हैं 3. वह रस्सी जिसके सहारे चोर ऊँचे मकानों पर चढ़ते हैं।
कम (फ़ा.) [वि.] 1. अल्प; थोड़ा; जो अधिक न हो 2. न्यून; तनिक।
कमअक्ल (फ़ा.) [वि.] जो अक्ल से कमज़ोर हो; बुद्धिहीन; बेवकूफ़; नासमझ; अल्पबुद्धि; मूर्ख; निर्बुद्धि।