कर्मशाला (सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ कारीगर या शिल्पी किसी वस्तु का निर्माण करते हैं; कारख़ाना; (वर्कशॉप)।
कर्मशील (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो फल की अभिलाषा छोड़कर स्वाभाविक रूप से कार्य करे; कर्मवान 2. सदैव अच्छे कामों में लगा रहने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. परिश्रमी 2. उद्योगी।
कर्मशूर (सं.) [वि.] वह जो साहस और दृढ़ता के साथ कर्म करने में प्रवृत्त हो; उद्योगी; कर्मवीर।
कर्मसाक्षी (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) वे देवता जो प्राणियों के कर्मों को देखते रहते हैं और उनके साक्षी रहते हैं 2. चश्मदीद गवाह। [वि.] कर्मों को देखने वाला।
कर्महीन (सं.) [वि.] 1. जिससे कोई अच्छा कार्य न हो या न कर सकता हो 2. अभागा; हतभाग्य; भाग्यहीन।
कर्मांत (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य का अंत; काम की समाप्ति 2. जोती हुई धरती 3. अन्न भंडार।
कर्मा (सं.) [वि.] यौगिक शब्दों के अंत में जुड़कर 'करने वाला' अर्थ देता है, जैसे- पुण्यकर्मा, विश्वकर्मा।
कर्मार (सं.) [सं-पु.] 1. कारीगर 2. कर्मकार; लुहार 3 कमरख 4. एक प्रकार का बाँस।
कर्मिष्ठ (सं.) [वि.] 1. कार्य करने में निपुण; कर्मकुशल 2. कर्मनिष्ठ।
कर्मी (सं.) [वि.] 1. कर्म करने वाला 2. क्रियाशील; सक्रिय 3. यज्ञादि कर्म करने वाला। [सं-पु.] 1. कारीगर 2. मज़दूर।
कर्मीर (सं.) [सं-पु.] 1. नारंगी रंग; किर्मीर 2. चितकबरा रंग।
कर्मेंद्रिय (सं.) [सं-स्त्री.] शरीर के वे अंग जिनसे कोई कार्य किया जाता है- हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ।
कर्वट (सं.) [सं-पु.] 1. बाज़ार; मंडी; पैठ 2. जिले का मुख्य स्थान 3. नगर; गाँव 4. पहाड़ की ढाल।
कर्ष (सं.) [सं-पु.] 1. खींचना 2. जोतना 3. लकीर खींचना 4. मनमुटाव 5. रोष; क्रोध 6. सोलह माशे की एक प्राचीन तौल 7. एक प्राचीन सिक्का।
कर्षक (सं.) [सं-पु.] किसान; खेतिहर। [वि.] 1. खींचने वाला 2. घसीटने वाला 3. हल जोतने वाला।
कर्षण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु को घसीटने, खींचने की क्रिया या भाव 2. खिंचाई 3. खरोंचकर लकीर बनाना 4. हल जोतना; जुताई 5. खेती-किसानी का काम; कृषि कर्म।
कर्षफल (सं.) [सं-पु.] 1. बहेड़ा; विभीतक 2. आँवला।
कर्षिणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खिरनी का पेड़; क्षीरिणी वृक्ष 2. घोड़े की लगाम।
कर्षित (सं.) [वि.] 1. खींचा हुआ; आकृष्ट किया हुआ 2. सताया हुआ; पीड़ित 3. क्षीण किया हुआ 4. जोता हुआ।
कर्षी (सं.) [सं-पु.] 1. किसान 2 हल चलाने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. खींचने वाला; कर्षक 2. खेत जोतने वाला।
कलंक (सं.) [सं-पु.] 1. लांछन; अपयश; बदनामी 2. धब्बा; दाग 3. त्रुटि; दोष 4. ऐसा कार्य जिससे मर्यादा, प्रतिष्ठा या ख्याति धूमिल हो। [मु.] -धोना/धो डालना : अपयश का कुप्रभाव दूर करना।
कलंकित (सं.) [वि.] 1. जिसपर कलंक लगा हो 2. अपयशी; कुख्यात 3. बदनाम 4. कलंकी।
कलंकुर (सं.) [सं-पु.] पानी का भँवर।
कलंदर (अ.) [सं-पु.] 1. मुसलमान साधुओं की एक जमात या उस जमात का कोई सदस्य 2. मस्त; फ़क्कड़; आज़ाद-तबियत व्यक्ति 3. रीछ, बंदर नचाने वाला मदारी।
कलंदरी (अ.) [वि.] कलंदर से संबंधित; कलंदर का।
कलंब (सं.) [सं-पु.] 1. कदंब का पेड़ 2. सरपत 3. साग का डंठल।
कल (सं.) [सं-पु.] 1. आने वाला दिन 2. बीता हुआ दिन 3. [पूर्वप्रत्य.] जब सामासिक शब्द के प्रत्यय के रूप में आता है, तो इसका अर्थ 'यंत्र', 'मशीन' आदि होता है, जैसे- कलपुरज़ा, कल-कारख़ाना।
कलई (अ.) [सं-स्त्री.] 1. राँगा 2. राँगे का वह लेप जो ताँबा-पीतल आदि से निर्मित वस्तुओं-बरतनों पर लगाया जाता है 3. मुलम्मा 4. लेप 5. छत, दीवार आदि पर होने वाली चूने की पुताई 6. {ला-अ.} वास्तविक तथ्य को छिपाने के लिए उस पर चढ़ाया हुआ आकर्षक मिथ्यावरण; दिखावटी आवरण। [मु.] -खुलना : भेद खुलना।
कलईगर (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. पीतल आदि की वस्तुओं पर कलई करने वाला कारीगर 2. जो राँगे का लेप या मुलम्मा चढ़ाता हो।
कलईदार (अ.+ फ़ा.) [वि.] जिसपर कलई की गई हो।
कलकंठ (सं.) [सं-पु.] 1. कोयल 2. कबूतर 3. हंस। [वि.] 1. जिसका गला सुंदर हो 2. जिसका स्वर मधुर हो।
कलक (अ.) [सं-पु.] 1. दुख; तकलीफ़ 2. अफ़सोस 3. घबराहट।
कल-कल (सं.) [सं-पु.] 1. नदी या झरने के प्रवाह की कोमल और मधुर ध्वनि 2. मृदुल और मिठासभरी ध्वनि या आवाज़।
कलकलाना [क्रि-अ.] 1. कलकल की आवाज़ होना 2. शरीर में गरमी की अनुभूति होना 3. कुलबुलाना (शरीर का)।