Hin Dict_K33 - हिंदी शब्दकोश - क33

कर्पर (सं.) [सं-पु.] 1. खोपड़ी; कपाल 2. कछुए की खोपड़ी 3. खप्पर 4. गूलर 5. कड़ाह; कड़ाही 6. ठीकरा 7. प्राचीन कालीन एक हथियार।
कर्पूर (सं.) [सं-पु.] 1. कपूर; काफ़ूर 2. एक सुगंधित पदार्थ जो जलने के बाद वायु में विलीन हो जाता है।
कर्फर (सं.) [सं-पु.] दर्पण; आरसी; शीशा; आईना।
कर्फ़्यू (इं.) [सं-पु.] 1. ऐसा राजकीय आदेश, जिसके अंतर्गत जनता को घर से बाहर निकलने आदि की मनाही होती है; घरबंदी 2. निषेधाज्ञा 3. धार्मिक या सांप्रदायिक दंगों के समय शहर में पुलिस या प्रशासन के द्वारा लगाया जाने वाला प्रतिबंध जिसमें लोग घर के बाहर नहीं निकल सकते।
कर्बुर (सं.) [सं-पु.] 1. स्वर्ण; सोना 2. धतूरा 3. जल 4. पाप 5. राक्षस 6. कचूर। [वि.] जो कई रंग से रँगा हो; रंग-बिरंगा; चितकबरा।
कर्म (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य; काम 2. आचरण 3. भाग्य 4. ऐसे धार्मिक कार्य जिन्हें करने का शास्त्रीय विधान हो 5. मृतात्मा की शांति हेतु किया गया कार्य। [मु.] -ठोंकना : भाग्य को कोसना। -फूटना : भाग्य का साथ न देना।
कर्मकांड (सं.) [सं-पु.] 1. शास्त्रविहित धार्मिक कर्म 2. वेद का वह भाग जिसमें नित्य-नैमित्तिक आदि कर्मों का विधान है 3. वह शास्त्र जिसमें यज्ञ, संस्कार आदि कर्मों का विधान हो 4. उक्त विधानों के अनुरूप होने वाला धार्मिक कृत्य।
कर्मकांडी (सं.) [सं-पु.] 1. कर्मकांड का विद्वान 2. यज्ञ, पूजा आदि धार्मिक कृत्य संपन्न करने वाला; पुरोहित 3. कर्मकांड के अनुसार पूजा आदि कराने वाला ब्राह्मण।
कर्मकार (सं.) [सं-पु.] 1. कारीगर 2. जिससे बलपूर्वक और बिना पारिश्रमिक दिए काम कराया जाए; बेगार 3. सेवक; नौकर 4. लुहार।

कर्मक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य करने का स्थान; कार्य-क्षेत्र 2. कर्मभूमि 3. ऐसा स्थान जहाँ कर्म किया जाए।
कर्मगुण (सं.) [सं-पु.] 1. कौटिल्य मत से काम की अच्छाई-बुराई 2. कार्यक्षमता।
कर्मचारी (सं.) [सं-पु.] 1. किसी काम के लिए नियमित वेतन या मज़दूरी पर नियुक्त व्यक्ति 2. कार्य संपादन के लिए नियुक्त व्यक्ति; कार्यकर्ता 3. काम करने वाला।
कर्मजन्य (सं.) [सं-पु.] कर्मफल; अच्छा या बुरा फल। [वि.] कर्म से उत्पन्न।
कर्मठ (सं.) [वि.] 1. कुशलतापूर्वक काम करने वाला; कर्मनिष्ठ 2. शास्त्रविहित कर्मों को ठीक प्रकार से करने वाला 3. जिसने कई प्रशंसनीय और स्तुत्य कार्य किए हों।
कर्मणि प्रयोग (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) वह अवस्था जिसमें किसी वाक्य में क्रियापद कर्म के लिंग-वचन के अनुसार निर्धारित होता है।
कर्मणि-वाच्य (सं.) [वि.] (व्याकरण) वह कार्य जो कर्म से संबंधित हो।
कर्मधारय (सं.) [सं-स्त्री.] (व्याकरण) समास का एक भेद जिसके दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है।
कर्मनाशा (सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर भारत की एक नदी का नाम।
कर्मनिष्ठ (सं.) [वि.] 1. कर्तव्यपालन में लगा रहने वाला; कर्तव्य का पालन करने वाला 2. कर्म में आस्था रखने वाला 3. सक्रिय; कर्मशील।
कर्मप्रधान (सं.) [वि.] 1. जिसमें कर्म की प्रधानता हो 2. भौतिक पदार्थों, उनके कार्यों तथा उनसे होने वाली अनुभूतियों से संबंध रखने वाला।

कर्मफल (सं.) [सं-पु.] 1. किए हुए कर्मों का फल 2. पूर्वजन्म में किए हुए कर्मों का फल; दुख-सुख आदि।
कर्मबंध (सं.) [सं-पु.] अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार जन्म और मृत्यु का बंधन या चक्र।
कर्मभूमि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कर्म करने का स्थान; कर्म-क्षेत्र 2. कर्मों या कृत्यों के लिए उपयुक्त भूमि।
कर्मभोग (सं.) [सं-पु.] किए हुए कर्मों का फल; कर्मफल; प्रारब्ध।
कर्ममार्ग (सं.) [सं-पु.] विहित कर्मों द्वारा मोक्षप्राप्ति का मार्ग।
कर्ममास (सं.) [सं-पु.] वर्षा ऋतु का श्रावण मास जो तीस दिनों का होता है; सावन मास।
कर्मयुग (सं.) [सं-पु.] चार युगों में से अंतिम और वर्तमान युग जिसमें पाप और अनीति की प्रधानता मानी जाती है; तिष्य; कलियुग।
कर्मयोग (सं.) [सं-पु.] 1. फलाफल का विचार किए बिना अपने कर्तव्य-पालन में सदैव लगे रहने का नियम अथवा व्रत 2. चित्त शुद्ध करने वाला शास्त्रविहित कर्म 3. कर्म-पथ की साधना।
कर्मयोगी (सं.) [सं-पु.] 1. कर्म मार्ग की साधना करने वाला व्यक्ति 2. निष्काम भाव से कर्म करने वाला व्यक्ति।
कर्मरेख (सं.) [सं-स्त्री.] कर्म या भाग्य की रेखा; कर्मलेख; तकदीर; किस्मत।
कर्मवाच्य (सं.) [सं-स्त्री.] (व्याकरण) क्रिया की दृष्टि से वाक्य का वह रूप जिसमें कर्म की प्रधानता हो।
कर्मवाद (सं.) [सं-पु.] (मीमांसा दर्शन) ऐसा सिद्धांत जिसमें कर्म ही प्रधान माना गया है।

कर्मवान (सं.) [वि.] 1. अच्छा या प्रशंसनीय कार्य करने वाला 2. शास्त्रविहित कर्मों में निष्ठा रखने वाला; संध्या, अग्निहोत्र आदि करने वाला; कर्मनिष्ठ।