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sOhanlAl dwivEdi (SP)_सोहन लाल द्विवेदी ((सं.प)
सोहन लाल द्विवेदी | |
जन्म | 22 फ़रवरी, 1906 |
जन्म भूमि | फतेहपुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1 मार्च, 1988 |
मुख्य रचनाएँ | भैरवी, पूजागीत सेवाग्राम, प्रभाती, युगाधार, कुणाल, चेतना, बाँसुरी, दूधबतासा आदि। |
भाषा | हिन्दी |
शिक्षा | एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | कोशिश करने वालों की हार नहीं होती |
अन्य जानकारी | पं. सोहनलाल द्विवेदी स्वतंत्रता आंदोलन युग के एक ऐसे विराट कवि थे, जिन्होंने जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृति करने, उनमें देश-भक्ति की भावना भरने और नवयुवकों को देश के लिए बड़े से बड़े बलिदान के लिए प्रेरित करने में अपनी सारी शक्ति लगा दी। कविवर हरिवंश राय बच्चन ने उनके सम्बन्ध में कहा था-" जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया था वह सोहन लाल द्विवेदी थे। अपने विद्यार्थी जीवन से ही वे राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत थे। " |
sOhanlAl dwivEdi_सोहन लाल द्विवेदी
sOhanlAl dwivEdi_सोहन लाल द्विवेदी
सोहन लाल द्विवेदी (अंग्रेज़ी:SOhan Lal DwivEdi) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं। उनका जन्म 22 फरवरी सन् 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी गांव में हुआ। इन्होंने हिंदी में एम.ए. किया तथा संस्कृत का भी अध्ययन किया। द्विवेदी जी हिन्दी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। द्विवेदीजी गांधीवादी विचारधारा के प्रतिनिधि कवि हैं। 1937 में लखनऊ से उन्होंने दैनिक पत्र 'अधिकार' का सम्पादन शूरू किया था। चार वर्ष बाद उन्होंने अवैतनिक सम्पादक के रूप में “बालसखा” का सम्पादन भी किया था। उनकी प्रमुख रचनाएँ भैरवी, पूजागीत, सेवाग्राम,प्रभाती,युगाधार,कुणाल,चेतना, बाँसुरी, दूधबतासा हैं।राष्ट्र धर्म उनके काव्य का मूल मंत्र है। राष्ट्र प्रेम से प्रेरित अपने ओजस्वी गीतों द्वारा जन-मानस में राष्ट्रीय चेतना जगाने में उन्हें जो लोकप्रियता मिली, उसी ने उन्हें जन सामान्य में 'राष्ट्रकवि' के रूप में प्रतिष्ठित किया। कविवर हरिवंश राय बच्चन ने उनके सम्बन्ध में कहा था - "जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया था वह सोहन लाल द्विवेदी थे। अपने विद्यार्थी जीवन से ही वे राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत थे।" 1969 में भारत सरकार ने आपको 'पद्मश्री' उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। 1 मार्च 1988 को राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी चिर निद्रा में लीन हो गए।
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