Hin Dict_a13 - हिंदी शब्दकोश - अ13
अक्रांत (सं.) [वि.] 1. जो किसी से न हारा हो; अपराजित 2. सबसे आगे का; जिससे आगे निकलना कठिन हो 3. जो दबाया न गया हो।
अक्रिय (सं.) [वि.] 1. जो क्रिया या कर्म न करता हो; क्रियाहीन; कर्मशून्य 2. काहिल; निकम्मा; निष्क्रिय 3. चेष्टारहित; प्रयासरहित 4. (रसायनविज्ञान) जो सरलता से रासायनिक अभिक्रिया न करता हो, जैसे- अक्रिय गैसें (हीलियम, आर्गन, नियान आदि)।
अक्रियमाण (सं.) [वि.] 1. जो कार्य रूप में न हो रहा हो 2. जो अपनी क्रिया या कार्य न कर रहा हो; (इनऑपरेटिव)।
अक्रिया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अक्रिय होने की अवस्था या भाव 2. कर्तव्यहीनता 3. कर्महीनता; निष्क्रियता; क्रियाहीनता 4. अनुचित कर्म; दुष्कर्म 5. अप्रयास; अकर्म।
अक्रीत (सं.) [वि.] 1. जिसे क्रय न किया गया हो; न ख़रीदा हुआ 2. उधार लिया हुआ।
अक्रूर (सं.) [वि.] 1. जो क्रूर न हो; अहिंसक 2. दयालु; कोमल चित्तवाला 3. सज्जन; सभ्य। [सं-पु.] (पुराण) कृष्ण के चाचा का नाम।
अक्रोध (सं.) [सं-पु.] 1. क्रोध का न होना; क्रोध का पूर्ण अभाव 2. सहिष्णुता का भाव।
अक्ल (अ.) [सं-पु.] 1. बुद्धि; समझ 2. चतुराई; होशियारी। [मु.] -का अंधा : मूर्ख; जिसमें समझ न हो। -का दुश्मन : मूर्ख; बेवकूफ़ी के काम करने वाला। -के पीछे लट्ठ लिए फिरना : लगातार मूर्खतापूर्ण कार्य करते रहना। -गुम हो जाना : कुछ समझ में न आना। -चरने जाना : बुद्धि का काम न करना। -ठिकाने लगाना : किसी को उसके स्तर का बोध कराना। -पर पत्थर पड़ना : बुद्धि का काम न करना। -लगाना : तरकीब या युक्ति सोचना। -सठिया जाना : साठ वर्ष का होने पर बुद्धि का ह्रास होना।
अक्लम (सं.) [सं-पु.] क्लांति या थकावट का न होना। [वि.] जिसे थकावट न होती हो।
अक्लमंद (अ.) [वि.] 1. समझदार; बुद्धिमान 2. चतुर; होशियार 3. दूरदर्शी; विवेकी।
अक्लमंदी (अ.) [सं-स्त्री.] 1. अक्लमंद होने की अवस्था या भाव; बुद्धिमत्ता; समझदारी 2. चतुराई; होशियारी 3. दूरदर्शिता 4. वैचारिकता।
अक्लांत (सं.) [वि.] जो थका न हो; क्लांतिरहित; विश्रांत।
अक्लिष्ट (सं.) [वि.] 1. जो क्लिष्ट या कठिन न हो; आसान; सरल 2. अक्लांत; क्लेशरहित 3. बोध्य; पठनीय (पुस्तक या लेख आदि) 4. जो अशांत या उद्विग्न न हो; अनुद्विग्न 5. सुलझा हुआ।
अक्ली (अ.) [वि.] 1. अक्ल या बुद्धि से संबंधित; अक्लदार; अक्लयोग्य 2. तर्कसिद्ध; वाजिब; उचित; ठीक।
अक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. पहिया; चक्र 2. गाड़ी का वह मोटा डंडा जिसके चारों तरफ़ पहिया घूमता है; पहिए का धूरा; चूल; कीला; अक्षदंड; (ऐक्सल; ऐक्सिस) 3. वह कल्पित या मानी हुई रेखा जिसपर कोई ठोस वस्तु घूमती है, जैसे- पृथ्वी के दो धुरियों को मिलाने वाली सीधी रेखा जिसपर पृथ्वी घूमती हुई मानी जाती है 4. धरती की धुरी 5. भूमध्यरेखा के उत्तर या दक्षिण के किसी स्थान का गोलीय अंतर 6. चौसर; पासों का खेल; जुआ 7. सोलह माशे की एक तौल 8. एक सौ चार अंगुल का एक पैमाना 9. आँख 10. तराजू का डंडा 11. कानून।
अक्षकर्ण (सं.) [सं-पु.] (रेखा.) समकोण त्रिभुज की सबसे लंबी भुजा; समकोण के सामने वाली भुजा; कर्णभुजा।
अक्षकाम (सं.) [वि.] जुआ खेलने का शौकीन, द्यूतप्रेमी।
अक्षकुशल (सं.) [वि.] जुआ खेलने में होशियार; द्यूतप्रवीण।
अक्षकूट (सं.) [सं-पु.] आँख की पुतली।
अक्षक्रीड़ा (सं.) [सं-स्त्री.] पासों से खेला जाने वाला खेल; चौसर; जुआ।
अक्षज (सं.) [वि.] अक्ष से उत्पन्न या बना हुआ। [सं-पु.] 1. प्रत्यक्ष ज्ञान 2. वज्र 3. हीरा।
अक्षत (सं.) [वि.] 1. जो क्षत या खंडित न हुआ हो; जो टूटा-फूटा न हो; अभंजित; समूचा; साबुत; सर्वांग; संपूर्ण 2. जो क्षत या जख़्मी न हुआ हो; अनाहंत। [सं-पु.] 1. अखंडित और कच्चा चावल 2. भिगोया हुआ साबुत चावल जिसका उपयोग पूजा, अभिषेक आदि कर्मकांडों में होता है; अच्छत 3. धान का लावा 4. जौ नामक खाद्यान्न 5. कल्याण।
अक्षतयोनि (सं.) [वि.] (युवती) जिसका कौमार्य भंग न हुआ हो; कुँवारी; कुमारी; कौमार्यवती; (वर्जिन)।
अक्षतयौवना (सं.) [वि.] 1. जिसका यौवन अक्षत हो 2. (युवती) जिसने कभी संभोग न किया हो।
अक्षतवीर्य (सं.) [वि.] (पुरुष) जिसने संभोग न किया हो; जिसका वीर्य स्खलित न हुआ हो 2. ब्रह्मचारी; अच्युतवीर्य। [सं-पु.] 1. नपुंसक 2. क्षय का अभाव।
अक्षता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह युवती जिसने संभोग न किया हो 2. वह स्त्री जिसने विवाह के बाद भी संभोग न किया हो 3. कुमारी; अक्षतयोनि।
अक्षदंड (सं.) [सं-पु.] 1. पहिए की धुरी; धुरीदंड 2. कीला।
अक्षदर्शक (सं.) [सं-पु.] जुए के खेल का निरीक्षक; जुआघर का मालिक।
अक्षधर (सं.) [वि.] धुरे को धारण करने वाला; जिसपर कोई अक्ष टिका हो। [सं-पु.] 1. गाड़ी का पहिया 2. बैल।
अक्षधुर (सं.) [सं-पु.] पहिए का धुरा; (ऐक्सल)।
अक्षपटल (सं.) [सं-पु.] 1. न्यायालय का भवन 2. मुकदमे के कागज़ात रखने का स्थान।
अक्षपाद (सं.) [सं-पु.] 1. तर्क या शास्त्र का विशेषज्ञ; तार्किक; नैयायिक 2. गौतम ऋषि जो न्यायशास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं।
अक्षबंध (सं.) [सं-पु.] 1. दृष्टि बाँध देने की विद्या; नज़रबंदी 2. नज़र बाँधने का काम।
अक्षम (सं.) [वि.] 1. क्षमतारहित; असहिष्णु 2. अयोग्य; अशक्त; असहाय; कमज़ोर; असमर्थ; (इनकेपेबल) 3. बेकस; बेकार 4. सामर्थ्यहीन; विकलांग; पंगु 5. कंगाल; दरिद्र।
अक्षमता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अक्षम होने की अवस्था या भाव; अशक्तता; असमर्थता 2. ईर्ष्या; जलन 3. अयोग्यता।
अक्षमापक (सं.) [सं-पु.] ग्रह-नक्षत्र देखने वाला एक यंत्र; (टेलीस्कोप)।
अक्षमाला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वर्णमाला 2. जपमाला; रुद्राक्ष की माला; सुमिरनी 3. वशिष्ठ की पत्नी; अरुंधती।
अक्षमाली (सं.) [सं-पु.] 1. रुद्राक्ष की माला धारण करने वाला 2. शिव का एक नाम।
अक्षम्य (सं.) [वि.] 1. जो क्षमा के योग्य न हो; अक्षंतव्य 2. अनुचित; अन्यायपूर्ण।
अक्षय (सं.) [वि.] 1. जिसका क्षय या विघटन न हो; अविनाशी; क्षयरहित 2. अनंत 3. अपरिवर्तनीय; शाश्वत 4. चिरयुवा। [सं-पु.] ब्रह्म।
अक्षयतृतीया (सं.) [सं-स्त्री.] वैशाख शुक्ल तृतीया; अक्षय तीज।
अक्षयधाम (सं.) [सं-पु.] (पुराण) वह स्थान या धाम जहाँ जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है; बैकुंठ; मोक्षलोक।
अक्षयनवमी (सं.) [सं-स्त्री.] कार्तिक शुक्ल नवमी।
अक्षयनिधि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी संपत्ति या निधि जिसका नाश न हो; वह भंडार जो कभी समाप्त न हो; अक्षयकोश 2. स्थायी दान या निधि 2. {ला-अ.} यश; कीर्ति; पुण्य।
अक्षयपद (सं.) [सं-पु.] 1. कभी नष्ट न होने वाला दिव्य स्थान; अक्षयधाम 2. बैकुंठ; मोक्ष; मुक्ति।
अक्षयपात्र (सं.) [सं-पु.] (पुराण) वह कल्पित पात्र जिसमें अन्न या भोजन सामग्री समाप्त नहीं होती है। [वि.] कभी न खाली होने वाला; मनचाही वस्तुएँ देने वाला (पात्र)।
अक्षयलोक (सं.) [सं-पु.] 1. सुरम्य स्थान; उपवन; मोक्ष का स्थान 2. (पुराण) स्वर्ग नामक स्थान।
अक्षयवट (सं.) [सं-पु.] प्रयाग और गया में स्थित बरगद के वृक्ष जिनके बारे में मिथकीय धारणा है कि प्रलय में भी उनका नाश नहीं हुआ, न आगे कभी होगा।
अक्षयी (सं.) [वि.] जिसका क्षय या नाश न हो; अक्षय; अविनाशी; शाश्वत।
अक्षय्य (सं.) [वि.] 1. किसी भी तरह जिसका क्षय या नाश न किया जा सके; अनश्वर 2. अखंडित।
अक्षर (सं.) [सं-पु.] 1. शब्द या शब्दांश जिसमें केवल एक स्वर हो 2. वह ध्वनि इकाई जिसका उच्चारण श्वास के एक झटके में होता है; (सिलेबल)। [वि.] 1. जिसका नाश न हो; अविनाशी 2. स्थिर; अच्युत; नित्य।
अक्षरअंतराल [सं-पु.] 1. कंपोज़िंग करते समय अक्षरों के बीच स्पेस डालना 2. छपे अक्षरों के मध्य का रिक्त स्थान।
अक्षरक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. (नामों आदि की सूची में) शब्दों के आरंभिक अक्षरों का वर्णमाला के अनुसार क्रम; अकारादि क्रम; वर्णक्रम; (ऐल्फ़ाबेटिकल ऑर्डर)।
अक्षरजीवी (सं.) [सं-पु.] 1. लेखन कार्य से जीविका चलाने वाला; लेखक 2. व्यावसायिक लेखक 3. प्रतिलिपिक; नकलनवीस 4. लिपिक।
अक्षरज्ञान (सं.) [सं-पु.] साक्षरता; लिखने-पढ़ने की योग्यता।
अक्षरता (सं.) [सं-स्त्री.] अक्षर या अविनाशी होने की अवस्था या भाव; शाश्वतता; अमरता।
अक्षरधाम (सं.) [सं-पु.] 1. ब्रह्मलोक 2. मोक्ष।
अक्षरमाला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी भाषा में ध्वनि संकेतों या लिपि चिह्नों का समूह 2. अक्षरों या वर्णों का समूह; वर्णमाला।
अक्षरयोजक (सं.) [सं-पु.] लिखित सामग्री को मुद्रणाक्षरों में संयोजित करने वाला; (टाइपसेटर; कंपोज़िटर)।
अक्षरयोजन (सं.) [सं-पु.] किसी विवरण अथवा पांडुलिपि की छपाई हेतु मुद्रणाक्षरों में संयोजित करना; (कंपोज़िंग; टाइपसेटिंग)।
अक्षरशः (सं.) [अव्य.] 1. (वाक्य या लेख में) एक-एक अक्षर पर ज़ोर देते हुए; एक-एक अक्षर का ध्यान या अनुकरण करते हुए; हर्फ़-ब-हर्फ़ 2. पूर्णतया; ब्यौरेवार; ज्यों का त्यों; यथावत।
अक्षरांतरण (सं.) [सं-पु.] 1. अक्षरों का परस्पर स्थानांतरण 2. शब्द में किसी वर्ण या अक्षर का इधर-उधर हो जाना, जैसे- चाकू को काचू, मतलब का मतबल।
अक्षराकृति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अक्षरों की बनावट; लिपि 2. अक्षरों और लिपि की शैली या डिज़ाइन; (फ़ॉन्ट)।
अक्षरात्मक (सं.) [वि.] 1. अक्षर संबंधी, अक्षर का 2. अक्षरों से बना हुआ।
अक्षरारंभ (सं.) [सं-पु.] 1. पहली बार अक्षरों या भाषा का ज्ञान कराना 2. विद्या ग्रहण आरंभ का एक संस्कार 2. पुराने समय में बच्चे के अक्षरज्ञान या शिक्षा का आरंभ करने पर होने वाला आयोजन।
अक्षरार्थ (सं.) [सं-पु.] 1. शब्द के प्रत्येक अक्षर का अर्थ 2. शब्दार्थ; शब्दों का अर्थ 3. भावार्थ से भिन्न संकुचित अर्थ।
अक्षरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शब्दों के अक्षरों का सटीक और सार्थक क्रम 2. वर्तनी; हिज्जे; (स्पेलिंग) 3. किसी शब्द का उतना ध्वनि समूह जो एक झटके में बोला जाए; (सिलेबल)।
अक्षरेखा (सं.) [सं-स्त्री.] वह सीधी रेखा जो किसी गोले के केंद्र से उसके तल के किसी बिंदु तक सीधी पहुँचती है; धुरी की रेखा; अक्षांश रेखा।
अक्षरौटी [सं-स्त्री.] 1. वर्णमाला 2. लिखाई की पद्धति; लिपि का ढंग।
अक्षहीन (सं.) [वि.] 1. अंधा; नेत्रहीन 2. धुरीविहीन।
अक्षांतर (सं.) [सं-पु.] 1. अक्षांश 2. भूमध्य रेखा से दूरी।
अक्षांति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अशांति 2. ईर्ष्या; असहनशीलता; अधीरता।
अक्षांश (सं.) [सं-पु.] 1. भूमध्यरेखा से उत्तर ध्रुव या दक्षिण ध्रुव की ओर कोणीय दूरी या अंतर; अक्षांतर 2. अक्षांतर रेखा; (लैटिट्यूड लाइन) 3. पृथ्वी की सतह पर स्थित किसी बिंदु या स्थान की उसके केंद्र से नापी गई कोणीय दूरी।
अक्षांशवृत्त (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी पर किसी स्थान से गुज़रने वाला एक काल्पनिक वृत्त जो भूमध्य रेखा के समांतर होता है; अक्षांश रेखा।
अक्षि (सं.) [सं-स्त्री.] आँख; नेत्र।
अक्षित (सं.) [वि.] 1. जिसे चोट न लगी हो 2. जिसका क्षय न हुआ हो। [सं-पु.] जल।
अक्षिति (सं.) [सं-स्त्री.] नश्वरता। [वि.] जिसका नाश या क्षय न हो।
अक्षिविक्षेप (सं.) [सं-पु.] नेत्रों का भाव विशेष के साथ संचालन; कटाक्ष; चितवन।
अक्षिसाक्षी (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसा साक्षी जिसने कोई घटना अपनी आँखों से देखी हो 2. चश्मदीद गवाह।
अक्षीण (सं.) [वि.] 1. जो क्षीण अर्थात दुर्बल न हो 2. जो क्षीण न हुआ हो; जो घटा न हो 3. मोटा; हृष्ट-पुष्ट; तगड़ा।
अक्षीय (सं.) [वि.] 1. अक्ष से संबंध रखने वाला 2. किसी वस्तु के भीतरी भाग से संबंधित।
अक्षीव (सं.) [सं-पु.] 1. समुद्री नमक 2. सहजन का वृक्ष। [वि.] जो मतवाला न हो; अमत्त।
अक्षुण्ण (सं.) [वि.] 1. क्षीण न होने वाला; सदैव बना रहने वाला; शाश्वत; स्थायी 2. अटूट; अखंड 3. समय के प्रभाव से जिसका महत्व कम न हो।
अक्षुद्र (सं.) [वि.] जो ओछा या तुच्छ न हो। [सं-पु.] शिव।
अक्षुब्ध (सं.) [वि.] जो क्षुब्ध न हो; क्षोभरहित; शांत; उत्तेजनाहीन।
अक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] 1. क्षेत्र का अभाव 2. ऐसी भूमि जिसमें खेती न हो सकती हो। [वि.] जो क्षेत्र बनने के लिए उपयुक्त न हो।
अक्षेम (सं.) [सं-पु.] 1. क्षेम; कुशल या मंगल का अभाव 2. कल्याण का अभाव 3. अमंगल।
अक्षेमकर (सं.) [वि.] 1. असुरक्षित 2. अशुभ और हानिकर 3. अमंगलकर।
अक्षोभ (सं.) [वि.] 1. जिसमें क्षोभ न हो; शांत; गंभीर; धीर 2. जो घबराया हुआ न हो।
अक्षोभ्य (सं.) [वि.] 1. जिसमें क्षोभ उत्पन्न न किया जा सके 2. जो कभी क्षुब्ध या उद्विग्न न होता हो 3. शांत; धीर।
अक्षौहिणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सेना की एक बड़ी इकाई 2. (महाभारत) अत्यंत विशाल तथा चतुरंगिणी सेना जिसमें 109350 पैदल, 65610 घोड़े, 21870 रथ और 21870 हाथी होते थे; वह सेना जिसमें अनेक हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सिपाही हों।
अक्स (अ.) [सं-पु.] 1. छाया; प्रतिबिंब, परछाईं 2. तस्वीर, चित्र 3. {ला-अ.} किसी के मन में छिपा द्वेषभाव। [मु.] -उतारना : किसी का चित्र बनाना; फ़ोटो खींचना।
अक्सीर (अ.) [वि.] 1. अपना गुण या प्रभाव दिखाने वाला 2. अत्यंत उपयोगी; लाभप्रद। [सं-पु.] 1. (मिथक) वह रस जो किसी भी धातु को सोने या चाँदी में बदल देता है; कीमिया; रसायन 2. सब रोगों के उपचार की दवा।