Hin Dict_a39 - हिंदी शब्दकोश - अ39


अर्चक (सं.) [वि.] 1. अर्चन करने वाला 2. पूजन करने वाला; पूजक।
अर्चन (सं.) [सं-पु.] 1. पूजा; अर्चना 2. आदर; सत्कार।
अर्चना (सं.) [सं-स्त्री.] उपासना; पूजन; वंदन; कीर्तन।
अर्चनीय (सं.) [वि.] उपासना के योग्य; पूजनीय; वंदनीय।
अर्चा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूजा; अर्चन 2. प्रतिमा या मूर्ति जिसकी पूजा की जाती हो।
अर्चि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अग्नि की शिखा 2. लौ; लपट 3. तेज; दीप्ति 4. सूर्योदय या सूर्यास्त के समय की किरणें।
अर्चित (सं.) [वि.] जिसकी अर्चना की गई हो; सम्मानित; पूजित; वंदित।
अर्ज़ (अ.) [सं-स्त्री.] 1. निवेदन; प्रार्थना; अपील; विनती 2. वस्त्र आदि की चौड़ाई।
अर्जक (सं.) [सं-पु.] 1. कमाने वाला; अर्जित करने वाला 2. प्राप्त करने वाला; हासिल करने वाला।
अर्जन (सं.) [सं-पु.] 1. कमाना 2. हासिल करना 3. संग्रह करना।
अर्जनीय (सं.) [वि.] 1. जिसका अर्जन किया जाना हो 2. संग्रह या प्राप्त करने योग्य।
अर्जित (सं.) [वि.] 1. अर्जन किया हुआ; कमाया हुआ 2. इकट्ठा किया हुआ; संचित; संगृहीत।
अर्ज़ी (अ.) [सं-स्त्री.] प्रार्थनापत्र; दरख़्वास्त। [वि.] 1. पृथ्वी; भूमि या ज़मीन संबंधी 2. लौकिक।
अर्ज़ीदावा (अ.) [सं-पु.] वह निवेदन-पत्र जो अदालत में दावा दायर करने के लिए दिया जाता है।
अर्ज़ीनवीस (अ.+फ़ा) [सं-पु.] अर्ज़ी लिखने वाला; वह जो दूसरों के लिए अर्ज़ियाँ लिखता हो।
अर्जुन (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच पांडवपुत्रों में से एक जो महाभारत के युद्ध में पांडव पक्ष का नायक था 2. एक वृक्ष जिसकी छाल औषधि के रूप में काम आती है 3. स्वर्ण धातु।
अर्जुनी [सं-स्त्री.] 1. हिमालय से निकलने वाली एक नदी; करतोया 2. सफ़ेद गाय 3. (पुराण) वाणासुर की पुत्री जिसका विवाह कृष्ण के पोते अनिरुद्ध के साथ हुआ था।
अर्ण (सं.) [सं-पु.] 1. अक्षर; वर्ण 2. जल; पानी 3. शोरगुल; हो-हल्ला 4. एक प्रकार का दंडक वृत्त 5. सागौन नामक वृक्ष।
अर्णव (सं.) [सं-पु.] 1. समुद्र 2. अंतरिक्ष 3. सूर्य 4. इंद्र 5. रत्न; मणि 6. दंडक वृत्त का एक भेद। [वि.] उत्तेजित; विकल।
अर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. निंदा; बुराई 2. जुगुप्सा; घृणा। [वि.] 1. निंदा या बुराई करने वाला 2. खिन्न; उदास; शोकाकुल।
अर्तिका (सं.) [सं-स्त्री.] बड़ी बहन।
अर्थ (सं.) [सं-पु.] 1. अभिप्राय; मतलब; मानी 2. प्रयोजन 3. किसी बात या शब्द की व्याख्या 4. शब्द की शक्ति 5. इष्ट; काम 6. कारण; निमित्त; हेतु 7. मामला 8. इंद्रियों के विषय- रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श 9. चार पुरुषार्थों में से एक 10. धन; संपत्ति 11. उपयोग 12. लाभ 13. दिलचस्पी। [क्रि.वि.] 1. अर्थ की दृष्टि से 2. वस्तुतः; सचमुच।
अर्थक (सं.) [वि.] 1. अर्थ या धन से संबंधित 2. आर्थिक 3. अर्थ या धन उपार्जित या पैदा करने वाला 4. अर्थ या मतलब से संबंध रखने वाला।
अर्थकर (सं.) [सं-पु.] जिसका कुछ अर्थ हो; सार्थक। [वि.] जिससे आमदनी हो, धन प्रदान करने वाला।
अर्थकाम (सं.) [वि.] जिसे अर्थ या धन प्राप्त करने की लालसा रहती है; धनेच्छु; धनकाम; स्वार्थी।
अर्थगत (सं.) [वि.] (शब्द के) अर्थ पर आश्रित।
अर्थगर्भ (सं.) [वि.] 1. जिसमें विशिष्ट अर्थ निहित हो 2. गहरे अर्थवाला; अर्थपूर्ण।
अर्थगर्भित (सं.) [वि.] 1. जिसमें एक या कई अर्थ हो सकते हों; अर्थपूर्ण 2. सारगर्भित; अर्थयुक्त 3. अभिव्यक्तिपूर्ण।
अर्थगृह (सं.) [सं-पु.] ख़ज़ाना, कोषागार।
अर्थगौरव (सं.) [सं-पु.] किसी वाक्य या रचना में अर्थ या आशय की गंभीरता और व्यापकता।
अर्थग्रहण (सं.) [सं-पु.] 1. आशय, अभिप्राय या मतलब समझना; अर्थबोध; भावग्रहण 2. शब्दार्थ।
अर्थघ्न (सं.) [वि.] 1. धन को नष्ट करने वाला 2. अपव्ययी।
अर्थचर (सं.) [सं-पु.] 1. नौकर या कर्मचारी 2. अर्थ या धन पर केंद्रित।
अर्थचिंतन (सं.) [सं-पु.] धनोपार्जन या आजीविका के बारे में किया जाने वाला सोच-विचार।
अर्थचिंता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. धन या रुपए की चिंता 2. अर्थलिप्सा।
अर्थच्छवि (सं.) [सं-स्त्री.] शब्द के अर्थ से निकलने या व्यक्त होने वाला भाव; विवक्षा, जैसे- दिवाकर और प्रभाकर का अर्थ है सूर्य, लेकिन अर्थच्छवियाँ भिन्न-भिन्न हैं, दिवाकर का अर्थ है दिन करने वाला तथा प्रभाकर का अर्थ है प्रकाश करने वाला।
अर्थतंत्र (सं.) [सं-पु.] 1. सार्वजनिक राजस्व तथा उसके आय-व्यय की पद्धति 2. अर्थव्यवस्था।
अर्थतः (सं.) [अव्य.] 1. अर्थात 2. अर्थ की दृष्टि से 3. वस्तुतः; सचमुच।
अर्थद (सं.) [वि.] धन या रुपया देने वाला; धनप्रद; लाभप्रद। [सं-पु.] 1. कुबेर 2. धन देकर अध्ययन करने वाला छात्र।
अर्थदंड (सं.) [सं-पु.] 1. अर्थ के रूप में दी जाने वाली सज़ा; जुरमाना 2. क्षतिपूर्ति के रूप में चुकाया जाने वाला धन 3. तावान; डाँड 4. हरजाना; (फ़ाइन)।
अर्थदान (सं.) [सं-पु.] पुरस्कारस्वरूप दिया जाने वाला धन।
अर्थदूषण (सं.) [सं-पु.] 1. अनुचित रूप से धन ख़र्च करना; अपव्यय 2. गलत तरीके से किसी का धन छीन लेना 3. दूसरे के धन को नष्ट करना 4. अर्थ में कमी निकालना।
अर्थदोष (सं.) [सं-पु.] 1. अर्थ संबंधी दोष 2. (काव्यशास्त्र) वे दोष जिनका संबंध अर्थ से होता है, इसके प्रमुख भेद है- अपुष्ट, कष्टार्थ, पुनरुक्त, संदिग्ध, दुष्क्रम, अपदयुक्त, अनवीकृत, नियमपरिवृत्त, अनुवाद, अयुक्त आदि।
अर्थध्वनि (सं.) [सं-स्त्री.] किसी शब्द या वाक्य से होने वाला अर्थ का बोध; व्यंजनार्थ।
अर्थनिरूपण (सं.) [सं-पु.] अर्थ की व्याख्या; अर्थ को खोलना; मतलब समझाना।
अर्थपरंपरा (सं.) [सं-स्त्री.] किसी शब्द के अर्थों की परंपरा; परंपरा से प्राप्त अर्थों का विकासक्रम में भी अक्षुण्ण रहना।
अर्थपिशाच (सं.) [सं-पु.] 1. धन संग्रह करने वाला व्यक्ति; लोभी 2. बहुत बड़ा कंजूस; धनलोलुप 3. सूदख़ोर।
अर्थपूर्ण (सं.) [वि.] 1. सारगर्भित 2. गंभीर 3. महत्वपूर्ण 4. सार्थक; संपूर्ण एवं स्पष्ट अर्थवाला।
अर्थप्रकृति (सं.) [सं-स्त्री.] नाटक में कथावस्तु के विकसित होने में मददगार तत्व। समग्र इतिवृत्त या कथावस्तु को पाँच स्थितियों में विभाजित किया किया जाता है- बीज, बिंदु, पताका, प्रकरी और कार्य, इन्हें ही अर्थप्रकृतियाँ कहा जाता हैं।
अर्थप्रणाली (सं.) [सं-स्त्री.] अर्थ से संबंधित विधि या कानून।
अर्थप्रधान (सं.) [वि.] जिसमें अर्थ की प्रधानता हो।
अर्थप्रबंध (सं.) [सं-पु.] किसी कार्य के लिए की जाने वाली रुपयों की व्यवस्था या प्रबंध; आय-व्यय; (फ़ाइनेंस)।
अर्थबंध (सं.) [सं-पु.] 1. विशेष अवसर पर या विशेष कार्य के लिए होने वाली आर्थिक व्यवस्था 2. कोई आर्थिक समझौता 3. वाक्य, पाठ, श्लोक आदि की रचना।
अर्थबुद्धि (सं.) [वि.] स्वार्थी; मतलबी।
अर्थभागी (सं.) [वि.] जो अर्थ या संपत्ति में हिस्सेदार हो।
अर्थभेद (सं.) [सं-पु.] (शब्दों में) अर्थ संबंधी अंतर।
अर्थभेदकारी (सं.) [वि.] अर्थभेद उत्पन्न करने वाला।
अर्थमूलक (सं.) [वि.] 1. अर्थ या दीवानी विभाग से संबंध रखने वाला 2. (शब्द) जो अर्थ पर केंद्रित हो।
अर्थयुक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] अर्थ या धन से युक्त होने की अवस्था या भाव; अर्थवान होना; लाभ।
अर्थलाभ (सं.) [सं-पु.] अर्थ या धन के रूप में होने वाला लाभ; मुनाफ़ा।
अर्थलिप्सा (सं.) [सं-स्त्री.] अर्थलोभ; अर्थलोलुपता; धन-संपत्ति का लालच।
अर्थलिप्सु (सं.) [वि.] जिसे अर्थ या धन की लिप्सा या लालसा हो।
अर्थलोलुप (सं.) [वि.] धन या अर्थ का लालची; धनलोलुप।
अर्थवक्रोक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अर्थ में चमत्कार 2. अर्थालंकार का एक भेद, जहाँ अर्थश्लेष सिर्फ़ अन्य अभिप्राय से कहे हुए वाक्य के अर्थ की कल्पना पर आधारित होता है, वक्रोक्ति में चमत्कार शब्दशक्तिमूलक होता है, जबकि अर्थवक्रोक्ति में वह अर्थशक्तिमूलक होता है।
अर्थवत्ता (सं.) [सं-स्त्री.] अर्थ की सत्ता; अर्थ की महत्ता।
अर्थवर्जित (सं.) [वि.] जिसका कोई महत्व न हो; महत्वहीन।
अर्थवाची (सं.) [वि.] अर्थ बताने वाला; सार्थक।
अर्थवाद (सं.) [सं-पु.] 1. किसी उपदेश या बात की व्याख्या 2. अर्थ का प्रकटीकरण।
अर्थवान (सं.) [वि.] 1. सारगर्भित 2. गंभीर 3. महत्वपूर्ण 4. सार्थक; संपूर्ण एवं स्पष्ट अर्थवाला 5. अर्थपूर्ण, उद्देश्यपूर्ण।
अर्थविकार (सं.) [सं-पु.] शब्दों के अर्थ में उत्पन्न होने वाला परिवर्तन या दोष; भाव में होने वाला बदलाव।
अर्थविचार (सं.) [सं-पु.] शब्द के अर्थ पर किया जाने वाला विचार।
अर्थवितंडा (सं.) [सं-पु.] आर्थिक लाभ के लिए होने वाली व्यर्थ की बहस या बातचीत।
अर्थविद (सं.) [वि.] तात्पर्य समझने वाला; अर्थ निकालने वाला।
अर्थविधान (सं.) [सं-पु.] शब्दों के अर्थ लगाने, बनाने या विकसित करने का ढंग।
अर्थविधि (सं.) [सं-स्त्री.] वह विधि या कानून जो राज्य की ओर से जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया हो; (सिविल लॉ)।
अर्थविवाद (सं.) [सं-पु.] 1. वह विवाद जो केवल अर्थ या धन से संबंधित हो 2. दीवानी मुकदमा।
अर्थविशेषज्ञ (सं.) [वि.] 1. अर्थ या संपत्ति के विषय में अच्छी जानकारी रखने वाला 2. अर्थशास्त्री।
अर्थविस्तार (सं.) [सं-पु.] अर्थ का समानधर्मा वस्तुओं पर लागू होना; अर्थ के नए आयाम खुलना।
अर्थव्यक्ति गुण (सं.) [सं-पु.] अर्थ को व्यक्त या स्पष्ट करने का गुण।
अर्थव्याप्ति (सं.) [सं-स्त्री.] अर्थ का फैलाव; अर्थ की व्यापकता; अर्थ की समृद्धि।
अर्थशास्त्र (सं.) [सं-पु.] 1. वह शास्त्र जिसमें अर्थ या धन की प्राप्ति, वितरण तथा विनिमय के सिद्धांतों का विवेचन हो; अर्थविज्ञान 2. पारंपरिक अर्थों में राजनीतिविज्ञान और नीतिशास्त्र।
अर्थशास्त्री (सं.) [सं-पु.] अर्थशास्त्र का ज्ञाता; अर्थशास्त्र का मर्मज्ञ।
अर्थशून्य (सं.) [वि.] निरर्थक; बकवासपूर्ण।
अर्थश्लेष (सं.) [सं-पु.] अर्थ में श्लेष; किसी शब्द का दोहरे-तिहरे अर्थ में प्रयोग।
अर्थसंकोच (सं.) [सं-पु.] शब्दों के व्यापक अर्थ में कमी आना।
अर्थसंगति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अर्थ (आशय) का सटीकपन 2. किसी कविता या रचना में अर्थ का परिप्रेक्ष्य और प्रसंग से तालमेल।
अर्थसंपदा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. धन-दौलत; रुपया-पैसा 2. खनिज पदार्थ; कच्चा माल 3. कोयला; पानी; लोहा।
अर्थसिद्धि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उद्देश्य की सिद्धि; कार्यसिद्धि 2. सफलता।
अर्थसूचक (सं.) [वि.] अर्थ को प्रकट करने वाला; अभिप्राय को स्पष्ट करने वाला।
अर्थसौंदर्य (सं.) [सं-पु.] किसी रचना में मिलने वाला अर्थगत सौंदर्य।
अर्थहीन (सं.) [वि.] 1. निरर्थक; बेकार; बेमतलब 2. सारहीन 3. असफल 4. निर्धन।
अर्थहीनता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अर्थहीन होने की अवस्था या भाव; निरर्थकता 2. सारहीनता 3. निर्धनता; विपन्नता।
अर्थांतर (सं.) [सं-पु.] 1. दूसरा विषय; नवीन विषय 2. नई स्थिति 3. दूसरा मतलब; नया अर्थ।
अर्थांतरन्यास (सं.) [सं-पु.] एक अलंकार जिसमें सामान्य से विशेष की और विशेष से सामान्य की अथवा इसी तरह कारण से कार्य की और कार्य से कारण का पुष्टि की जाती है।
अर्थागम (सं.) [सं-पु.] आय; धनार्जन; आमदनी; धनागम।
अर्थात (सं.) [अव्य.] 1. अर्थ यह है कि; तात्पर्य यह कि 2. अर्थतः 3. यानी; आशय; मतलब 4. दूसरे शब्दों में 5. वस्तुतः; फलतः 6. विवरणसूचक शब्द।
अर्थातिक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. हाथ में आई अच्छी चीज़ छोड़ देना 2. गलत अर्थ निकालना; अर्थ-विभ्रम।
अर्थाधिकरण (सं.) [सं-पु.] अर्थ से संबंधित न्यायालय; दीवानी अदालत।
अर्थाधिकारी (सं.) [सं-पु.] 1. कोष या खज़ाने की देख-रेख करने वाला अधिकारी; खजांची 2. आर्थिक विषयों का ज्ञाता; अर्थशास्त्री 3. अर्थमंत्री।
अर्थानर्थापद (सं.) [सं-पु.] लाभ और हानि का एक साथ होने वाला भय।
अर्थानुबंध (सं.) [सं-पु.] 1. पारस्परिक हित के विचार से होने वाला आर्थिक समझौता 2. किसी विशिष्ट काम या बात के लिए होने वाली आर्थिक व्यवस्था; अर्थबंध।
अर्थानुवाद (सं.) [सं-पु.] 1. (न्यायालय में) विधि विहित विषय का बार-बार यथावत कथन या अनुवचन 2. शब्दार्थ-आधारित अनुवाद; सतही या यांत्रिक अनुवाद।
अर्थानुसंधान (सं.) [सं-पु.] शब्दों के अर्थों को खोजने और समझने का प्रयास करना।
अर्थान्वित (सं.) [वि.] 1. (वाक्य या उक्ति) अर्थ या आशय से युक्त 2. महत्वपूर्ण; सार्थक 3. सारगर्भ 4. मार्मिक 5. धनी; जो धन-संपत्ति से युक्त हो।
अर्थापत्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. परिणाम; फल 2. ऐसा प्रमाण जिसमें एक बात से दूसरी बात की सिद्धि होती है 3. अर्थालंकार का एक भेद जिसमें एक अर्थ द्वारा दूसरा स्वतः सिद्ध हो जाए।
अर्थापदेश (सं.) [सं-पु.] शब्दों के मूल अर्थ विलुप्त होने और नए अर्थ के समावेश होने की क्रिया।
अर्थापन (सं.) [सं-पु.] किसी गूढ़ पद या वाक्य का अर्थ लगाना या बताना; यह कहना कि इसका यह अर्थ है।
अर्थाभाव (सं.) [सं-पु.] 1. गरीबी; विपन्नता 2. आर्थिक संकट; अर्थ की कमी या अभाव।
अर्थार्थी (सं.) [वि.] 1. धन की कामना रखने या उसे प्राप्त करने की कोशिश में लगा रहने वाला 2. मतलबी; स्वार्थी।
अर्थालंकार (सं.) [सं-पु.] वह अलंकार जो शब्द नहीं बल्कि अर्थ में चमत्कार उत्पन्न करता हो।
अर्थिक (सं.) [सं-पु.] 1. प्रहरी 2. मध्यकाल में वह व्यक्ति जो राजा को सोने और उठने के समय की सूचना देता था। [वि.] किसी चीज़ की चाह रखने वाला।
अर्थित (सं.) [वि.] 1. माँगा हुआ; चाहा हुआ 2. प्रार्थित 3. अर्थ लगाया हुआ।
अर्थी (सं.) [सं-स्त्री.] शव को शवदाह गृह या श्मशान तक ले जाने के लिए बाँस या लकड़ी से बनायी गई आयताकार टिकठी। [सं-पु.] 1. धनवान 2. सेवक 3. वादी; मुद्दई। [वि.] 1. याचक; इच्छा या चाह रखने वाला 2. गरज़मंद।
अर्थेतर (सं.) [वि.] 1. आर्थिक मामलों से भिन्न संदर्भ का 2. सीधे-सामान्य अर्थ से इतर परिप्रेक्ष्य वाला।
अर्थोत्कर्ष (सं.) [सं-पु.] अर्थ का किसी अच्छे प्रसंग में परिवर्तन या बदलाव; अर्थ का उत्कर्ष होना।
अर्थोद्घाटन (सं.) [सं-पु.] अर्थ का उद्घाटन; अर्थ का प्रकाशन।
अर्थोपक्षेपक (सं.) [सं-पु.] नाटक में रसहीन वस्तुओं की सिर्फ़ सूचना दी जाती है और ऐसी सूचना देना ही अर्थोपक्षेपक कहलाता है। इसके पाँच प्रकार हैं- विष्कंभ (विष्कंभक), चूलिका, अंकास, अंकावतार और प्रवेशक।
अर्थोपचार (सं.) [सं-पु.] वह उपचार या क्षतिपूर्ति जो अर्थ-न्यायालय या अर्थविधि के द्वारा प्राप्त हो।
अर्थोपार्जन (सं.) [सं-पु.] 1. अर्थ या धन कमाने की क्रिया या भाव 2. रोज़गार।
अर्थ्य (सं.) [वि.] 1. माँगने योग्य; चाहने योग्य 2. उपयुक्त; उचित 3. धनी 4. बुद्धिमान; चतुर।
अर्दन (सं.) [सं-पु.] 1. पीड़न; दुख देना 2. दूर करना या हटाना 3. याचना; माँगना 4. वध; हत्या 5. चलने या गमन करने की क्रिया या भाव। [वि.] 1. पीड़ा या कष्ट देने वाला 2. नाश करने वाला 3. जो बेचैनी से घूमता या चलता है।
अर्दित (सं.) [वि.] 1. जिसे पीड़ा पहुँचाई गई हो; पीड़ित 2. गया हुआ; गत 3. चाहा या माँगा हुआ; याचित। [सं-पु.] एक वात रोग।
अर्ध (सं.) [वि.] 1. आधा; (हाफ़) 2. मध्य 3. तुल्य या सम (विभाग) 4. आंशिक। [सं-पु.] 1. भाग 2. आधा भाग।
अर्धउष्ण (सं.) [सं-पु.] आधा गरम; कुनकुना।
अर्धक (सं.) [वि.] 1. आधा 2. अधूरा।
अर्धकुशल (सं.) [वि.] 1. आधी-अधूरी जानकारी या कौशलवाला; अनाड़ी 2. जो किसी काम का आधा जानकार हो।
अर्धकुसुमित (सं.) [वि.] आधा खिला हुआ; अधखिला।
अर्धक्षमता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आधी-अधूरी क्षमता 2. न इधर न उधर।
अर्धगोलाकार (सं.) [वि.] गोले के आधे आकार का; गोलार्ध जैसा।
अर्धग्रामीण (सं.) [वि.] 1. जो आधा गँवई तथा आधा शहराती हो 2. ग्रामीण रहन-सहन और संस्कृति से काफ़ी हद तक मुक्त; शहरी जीवन से प्रभावित।
अर्धचंद्र (सं.) [सं-पु.] 1. आधा चंद्रमा; अष्टमी का चाँद 2. अनुनासिक ध्वनि का चिह्न; चंद्रबिंदु 3. हिलाल 4. मोरपंख पर की आँख जो आधे चंद्रमा सरीखी दिखती है 5. नख-क्षत 6. अर्धचंद्राकार नोक वाला बाण 7. त्रिपुंड का एक प्रकार।
अर्धचंद्राकार (सं.) [वि.] 1. आधे चंद्रमा के आकार का 2. धनुषाकार; नवचंद्राकार।
अर्धचालक (सं.) [सं-पु.] (धातु या पदार्थ) जिनमें विशेष परिस्थितियों में ही विद्युत प्रवाह होता है; जो पूरी तरह सुचालक न हो; (सेमीकंडक्टर)।
अर्धचेतन (सं.) [वि.] 1. आधे होश में; पूरी तरह चैतन्य नहीं 2. अवचेतन।
अर्धजन्मा (सं.) [वि.] 1. आधा जन्मा हुआ 2. अर्धविकसित।
अर्धजागृत (सं.) [वि.] आधा जागा हुआ; जो अलसाया हुआ हो।
अर्धजीवित (सं.) [वि.] अधमरा; जिसमें आधी जान बची हो।
अर्धज्ञान (सं.) [सं-पु.] 1. अधूरा ज्ञान; अल्पज्ञान 2. नामसझी।
अर्धदेव (सं.) [सं-पु.] मनुष्यों और देवताओं में वह योनि या जीववर्ग जिसमें किन्नर, यक्ष, गंधर्व, वसु आदि आते हैं।
अर्धनगरीय (सं.) [वि.] जो पूरी तरह नगरीय न हो पाया हो; कस्बाई; देहाती।
अर्धनग्न (सं.) [वि.] 1. आधा नंगा; जो पूरे कपड़े न पहने हो 2. कम वस्त्रोंवाला।
अर्धनारीश्वर (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) स्त्री और पुरुष दोनों की शारीरिक विशेषताओं को संयुक्त रूप से दर्शाने वाली दैवी मूर्ति या शक्ति 2. शिव का एक रूप जिसमें उनके शरीर के आधे भाग में पार्वती का रूप होता है।
अर्धनिमीलित (सं.) [वि.] आधा बंद या आधा खुला; अधखिला।
अर्धप्रतिमा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खंडित मूर्ति 2. अर्धछवि; जो पूरी तरह साकार न हुआ हो।
अर्धमागधी (सं.) [सं-स्त्री.] प्राकृत का एक भेद, जिससे पूर्वी भाषाओं अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी आदि का विकास हुआ है।
अर्धमासिक पत्रिका (सं.) [सं-स्त्री.] माह में दो बार निकलने वाली पत्रिका; पाक्षिक पत्रिका।
अर्धमूर्छित (सं.) [वि.] आधा बेहोश; जो पूरी तरह मूर्छित या बेहोश न हो; अर्धचेतन; नीमबेहोश।
अर्धरात्रि (सं.) [सं-स्त्री.] आधी रात; आधी रात का पहर।
अर्धवयस्क (सं.) [वि.] अल्पवयस्क, किशोर।
अर्धवार्षिक (सं.) [वि.] आधे साल का; आधे साल में होने वाला; छमाही।
अर्धविकसित (सं.) [वि.] 1. जो पूरी तरह विकसित न हो; नामुकम्मल 2. विकासशील; विकसनशील 3. असामयिक; कच्चा 4. अपक्व; समय से पूर्व का; अप्रौढ़।
अर्धविक्षिप्त (सं.) [वि.] आधा पागल।
अर्धविधिक (सं.) [वि.] जो पूरी तरह विधि-सम्मत या कानून-सम्मत न हो।
अर्धविराम (सं.) [सं-पु.] 1. वाक्य में होने वाला विराम; (सेमीकोलन) 2. थोड़ा-सा रुकना; ठिठकना।
अर्धविवृत (सं.) [वि.] 1. आधा खुला 2. (स्वर) जिसका उच्चारण करते समय मुँह आधा खुला रहे, जैसे- 'ऐ' और 'औ'।
अर्धविस्मृत (सं.) [वि.] आधा भूला हुआ; जो पूरी तरह याद न हो।
अर्धवृत्त (सं.) [सं-पु.] 1. वृत्त या गोले का आधा भाग; (सेमीसर्किल) 2. मध्य बिंदु से समान अंतर पर खींची गई गोल रेखा का आधा भाग।
अर्धवृत्ताकार (सं.) [वि.] आधे वृत्त या गोले के आकार का; गोलाई का आधा; (सेमीसर्कुलर)।
अर्धवृद्ध (सं.) [वि.] युवावस्था और वृद्धावस्था के बीच का; अधेड़।
अर्धव्यास (सं.) [सं-पु.] आधा व्यास; त्रिज्या।
अर्धशंका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आधा संदेह; कुछ शंका 2. असमंजस; दुविधा।
अर्धशताब्दी (सं.) [सं-स्त्री.] आधी शताब्दी; अर्द्धशती; पचास वर्ष।
अर्धशब्द (सं.) [वि.] जिसकी आवाज़ ज़ोर की नहीं बल्कि धीमी हो।
अर्धशासकीय (सं.) [वि.] 1. सार्वजानिक एवं निजी क्षेत्र का संयुक्त (उद्यम) 2. अर्धसरकारी; (सेमीगवर्नमेंट)।
अर्धशास्त्रीय (सं.) [वि.] जो पूरी तरह शास्त्रीय या शास्त्र-सम्मत न हो।
अर्धशिक्षित (सं.) [वि.] जिसकी पढ़ाई अधूरी रह गई हो।
अर्धशेष (सं.) [वि.] जिसका आधा ही शेष रहा गया हो; जिसका आधा बरबाद हो चुका हो।
अर्धसंवृत्त (सं.) [वि.] 1. आधा बंद 2. (स्वर) जिसका उच्चारण करते समय मुँह आधा बंद रहे, जैसे- 'ऐ' और 'औ'।
अर्धसत्र (सं.) [सं-पु.] विश्वविद्यालय में छह महीनों का पाठ्यक्रम या छह महीनों की अवधि; (सेमेस्टर)।
अर्धसम (सं.) [वि.] जो आधे के बराबर हो। [सं-पु.] वह छंद या वृत्त जिसका पहला और तीसरा तथा दूसरा और चौथा चरण समान हो, जैसे- दोहा और सोरठा।
अर्धसमवृत्त (सं.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) वह छंद या वृत्त जिसके पहले तथा तीसरे और दूसरे तथा चौथे चरणों में बराबर-बराबर मात्राएँ या वर्ण हों, जैसे- दोहा, सोरठा आदि।
अर्धसरकारी (सं.) [वि.] अर्धशासकीय; (सेमीगवर्नमेंट)।
अर्धसाक्षर (सं.) [वि.] अधूरा पढ़ा-लिखा; अर्द्धशिक्षित।
अर्धसीरी (सं.) [सं-पु.] वह किसान जो परिश्रम के बदले आधी फ़सल लेता हो; बटाईदार।
अर्धसैनिक (सं.) [वि.] सेना से इतर केंद्रीय नियंत्रण वाले बल; (पैरामिलिटरी)।
अर्धस्वर उच्चारण के समय जिह्वा एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर सरकती है और वायुविवर को किंचित सँकरा कर देती है, जैसे- 'य्, व्'।
अर्धस्वायत्त (सं.) [वि.] जिसके संचालन के कुछ नियम-कानून अपने हों कुछ सरकारी।
अर्धांग (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर का आधा अंग या भाग 2. शिव का एक नाम।
अर्धांगिनी (सं.) [सं-स्त्री.] पत्नी; सहधर्मिणी; (वाइफ़)।
अर्धांगी (सं.) [सं-पु.] 1. पक्षाघात का रोगी 2. शिव।
अर्धांश (सं.) [वि.] 1. आधे का आधा; चौथाई 2. आधे-आधे।
अर्धांशी (सं.) [वि.] जो आधे अंश या हिस्से का अधिकारी या पात्र हो।
अर्धाली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छंद विशेषतः चौपाई का आधा भाग 2. चौपाई की एक पंक्ति में दो भाग होते हैं तथा प्रत्येक भाग अर्धाली कहलाता है।
अर्धावृत्त (सं.) [वि.] 1. आधा घिरा हुआ 2. आधा ढका हुआ।
अर्धाशन (सं.) [सं-पु.] आधा भोजन।
अर्धासन (सं.) [सं-पु.] किसी का सम्मान करने के लिए उसे अपने आसन पर बैठाना या अपने आसन का आधा अंश उसे देना।
अर्धेंदु (सं.) [सं-पु.] अर्धचंद्र।
अर्धोत्तोलित (सं.) [वि.] जिसे आधा उठाया गया हो।
अर्धोत्थित (सं.) [वि.] जो आधा उठा हो।
अर्धोदक (सं.) [सं-पु.] आधे शरीर तक गहरा पानी।
अर्धोदय (सं.) [सं-पु.] माघ की अमावस्या का रविवार के दिन पड़ने पर मनाया जाने वाला पर्व।
अर्धोन्मीलित (सं.) [वि.] आधा खिला हुआ (फूल आदि)।
अर्पक (सं.) [वि.] अर्पण करने वाला; नम्रतापूर्वक देने वाला; समर्पक।
अर्पण (सं.) [सं-पु.] 1. देना; सौंपना; भेंट करना 2. दान; प्रदान; बलिदान 3. वापस करना 4. रखना 5. समर्पण।
अर्पित (सं.) [वि.] 1. अर्पण किया हुआ; श्रद्धा के साथ अपने अभीष्ट को न्योछावर किया हुआ 2. दिया हुआ; प्रदत्त; चढ़ाया हुआ 3. उपहृत; समर्पित; हस्तांतरित।
अर्बन (इं.) [वि.] शहरी; नगर के रूप में विकसित।
अर्बुद (सं.) [सं-पु.] 1. एक रोग जिसमें शरीर पर इल्ले की भाँति मांस पिंड निकल आता है; बतौरी 2. दस करोड़ 3. आबू पहाड़; अरावली पर्वत 4. एक पुराणोक्त सर्प 5. एक दैत्य जिसे इंद्र ने मारा था 6. दो माह का गर्भ 7. जैनियों का एक तीर्थस्थान।
अर्भ (सं.) [सं-पु.] 1. शिशु; बच्चा 2. छात्र 3. कुशा 4. नेत्र बाला नामक औषधि 5. शिशिर ऋतु।
अर्भक (सं.) [सं-पु.] 1. बच्चा 2. छौना 3. कुशा 4. मूर्ख आदमी। [वि.] दुबला-पतला; छरहरा; कृशोदर।
अर्यमा (सं.) [सं-पु.] 1. सूर्य 2. बारह आदित्यों में से एक 3. पितरों का एक गण 4. मदार; आक।
अर्राटा [सं-पु.] घोर शब्द; ज़ोर की आवाज़।
अर्राना [क्रि-अ.] 1. चिल्लाना 2. घोर शब्द करना 3. अकड़ दिखाना 4. व्यर्थ की बातें करना।
अर्ल (इं.) [सं-पु.] इंग्लैंड में सामंतों और बड़े ज़मीदारों को प्रदान की जाने वाली उपाधि।
अर्वट (सं.) [सं-पु.] राख; भस्म।
अर्वा (सं.) [सं-पु.] 1. अश्व; घोड़ा 2. चंद्रमा के दस घोड़ों में से एक 3. इंद्र।
अर्वाचीन (सं.) [वि.] 1. आधुनिक; वर्तमान का; नया 2. इधर का; हाल का 3. 'प्राचीन' का विलोम।
अर्श (सं.) [सं-पु.] बवासीर; गुदा का एक जटिल रोग।
अर्शहर (सं.) [सं-पु.] अर्श या बवासीर के रोग में लाभ करने वाली औषधि।
अर्शी (सं.) [वि.] बवासीर का मरीज़।
अर्ह (सं.) [वि.] 1. सम्मान्य; पूजनीय 2. योग्य 3. उपयुक्त 4. अधिकारी; समर्थ। [सं-पु.] 1. औचित्य 2. उपयुक्तता 3. योग्यता 4. गति 5. इंद्र 6. विष्णु।
अर्हंत (सं.) [वि.] योग्य; उपयुक्त। [सं-पु.] 1. शिव 2. बुद्ध 3. जिन।
अर्हण (सं.) [सं-पु.] 1. सम्मान 2. पूजा।
अर्हणा (सं.) [सं-स्त्री.] अर्हण।
अर्हणीय (सं.) [वि.] सम्मान या पूजा के योग्य।
अर्हत (सं.) [वि.] 1. प्रसिद्ध; विख्यात 2. प्रशंसित 3. पूज्य। [सं-पु.] 1. बुद्ध 2. तीर्थंकर 3. परमज्ञानी।
अर्हता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. योग्यता; पात्रता 2. किसी पद या ओहदे के लिए वांछित योग्यता।
अर्हन (सं.) [सं-पु.] 1. पूजा; पूजन 2. देव; जिन।