उघटा [सं-पु.] उघटने की क्रिया या भाव। [वि.] 1. दबी या भूली हुई बातें कहकर भेद या रहस्य खोलने वाला 2. अपने उपकारों या भलाइयों और दूसरे के अपकारों या बुराइयों की चर्चा करने वाला अथवा ऐसी चर्चा करके ताना देते हुए दूसरे को नीचा दिखाने वाला 3. किए हुए उपकार को बार-बार कहने वाला, अहसान जताने वाला।
उघड़ना [क्रि-अ.] 1. उघरना; आवरण हट जाने पर, छिपी या दबी हुई वस्तु का प्रकट होना या सामने आना; प्रत्यक्ष; व्यक्त या स्पष्ट होना 2. आगे पड़ा हुआ आवरण हटना 3. भेद या रहस्य खुलना; भंडा फूटना।
उघड़ा [वि.] आवरणहीन; खुला; जो ढका न रहे।
उघरना [क्रि-अ.] 1. खुलना 2. किसी छिपी बात, वस्तु आदि का प्रत्यक्ष रूप से सामने आ जाना 3. अनावृत होना; नंगा होना 4. भेद खुलना; भंडाफोड़ होना 5. उचटना; विरक्त होना।
उघरनी [सं-स्त्री.] 1. किसी दूसरी वस्तु को खोलने वाली चीज़ 2. चाभी; ताली; कुंजी।
उघरारा [वि.] 1. जिसपर कोई आवरण न हो; खुला हुआ 2. नग्न; नंगा; अनावृत 3. जो बंद न हो।
उघाड़ना [क्रि-स.] 1. आवरण हटाना 2. खोलना 3. नंगा करना; अनावृत करना 4. प्रकट करना 5. भंडा फोड़ना; गुप्त बात खोलना।
उघाड़ा [वि.] 1. जिसपर कोई आवरण या पर्दा न हो; खुला हुआ; आवरणहीन 2. जिसके शरीर पर वस्त्र न हो; नंगा।
उघारना [क्रि-स.] 1. अनावृत करना; परदा हटाना या उठाना 2. पर्दाफाश करना 3. वस्त्रविहीन करना।
उचकन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे रखा जाने वाला कोई आधार 2. ईंट-पत्थर आदि का वह टुकड़ा जिसे नीचे रख कर किसी चीज़ को ऊँचा करते हैं।
उचकना [क्रि-अ.] पंजे के बल खड़े होकर किसी ऊँची वस्तु को देखने या पकड़ने का प्रयत्न करना; पंजे के बल शरीर को थोड़ा ऊपर उठाना; उछलना। [क्रि-स.] उचक लेना; उठा लेना; लपककर ले लेना।
उचकाना [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु, व्यक्ति आदि को ऊपर की ओर उठाना 2. ऊपर करना 3. उछालना 4. ऊँचा करना।
उचक्का [सं-पु.] 1. दूसरे की वस्तु आदि छीनकर भागने वाला आदमी 2. ठग; धूर्त 3. बदमाश 4. उठाईगीर 5. चोर।
उचक्कापन [सं-पु.] 1. उचक्का होने की अवस्था, भाव या गुण 2. चोर, बदमाश होने की अवस्था।
उचटना [क्रि-अ.] 1. ऊबना (मन का न लगना); मन का उदासीन होना 2. मन का विरक्त होना।
उचटाना [क्रि-स.] 1. अलग करना; छुड़ाना 2. उखाड़ना; नोंचना 3. उदासीन या विरक्त करना 4. किसी उपाय या प्रयत्न से किसी का मन किसी चीज़ से हटाना; ध्यान बँटाना 5. किसी का मन या ध्यान किसी ओर से हटाने से लिए किया गया प्रयत्न; बिचकाना; भड़काना।
उचरना (सं.) [क्रि-स.] 1. उच्चारण करना 2. बोलना; कहना 3. लिखे हुए अक्षरों को सस्वर पढ़ा जाना; मुँह से शब्द निकालना।
उचराई [सं-स्त्री.] 1. उच्चारण करने की क्रिया; भाव या स्थिति 2. उच्चारण करने का पारिश्रमिक।
उचाट (सं.) [सं-पु.] ऊबना; विरक्ति (मन का न लगना); ऊबने की क्रिया। [वि.] 1. विरक्त 2. वह जो उचट गया हो।
उचाटना (सं.) [क्रि-स.] 1. ध्यान भंग करना; ध्यान तोड़ना 2. उच्चाटन करना 3. विरक्त करना 4. ध्यान हटाना।
उचाड़ना [क्रि-स.] 1. किसी लगी, सटी या चिपकी वस्तु को अलग करना 2. उखाड़ना 3. नोचना।
उचिंत खाता [सं-पु.] पंजी या बही का वह खाता जिसमें अस्थायी रूप से ऐसे धन के बारे में लिखा जाता है, जिसका पूरा हिसाब बाद में होने को हो (सस्पेंस अकाउंट)।
उचित (सं.) [वि.] 1. ठीक; औचित्यपूर्ण 2. भलीतरह; मुनासिब 3. आदर्श; न्याय आदि की दृष्टि से यथोचित।
उच्च (सं.) [वि.] 1. ऊँचा 2. बड़ा; श्रेष्ठ 3. लंबा 4. महान; कुलीन; उत्तम 5. प्रमुख; प्रधान 6. प्रभावशाली 7. जिसका विस्तार ऊपर की ओर बहुत दूर तक हो 8. जो अधिकार, पद आदि में सबसे बड़ा हो।
उच्चक (सं.) [वि.] 1. सबसे अधिक ऊँचा 2. ऊँचाई के विचार से उस निश्चित सीमा तक पहुँचने वाला जिससे आगे बढ़ना या ऊपर चढ़ना वर्जित हो; (सीलिंग)।
उच्चतम (सं.) [वि.] 1. सबसे ऊँचा; सबसे उच्च 2. जिससे बढ़कर ऊँचा न कोई हो न हो सकता हो 3. 'निम्नतम' का विलोम।
उच्चतर (सं.) [वि.] 1. उच्च के बाद तथा उच्चतम से पहले की स्थिति; (हायर) 2. उच्च और उच्चतम के मध्य की अवस्था, जैसे- उच्चतर माध्यमिक विद्यालय।
उच्चता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उच्च होने की अवस्था या भाव 2. श्रेष्ठता 3. ऊँचापन 4. उत्तमता।
उच्चयापचय (सं.) [सं-पु.] उन्नत्ति तथा अवनति; उत्थान तथा पतन।
उच्चरण (सं.) [सं-पु.] 1. बाहर आना 2. कंठ, तालू, जिह्वा आदि के प्रयत्न से शब्द का बाहर आना 3. मुँह से शब्द फूटना 4. गले से आवाज़ निकलना 5. उच्चारण; कहना; बोलना।
उच्चरित (सं.) [वि.] 1. जिसका उच्चारण किया गया हो 2. उच्चारित 3. बोला हुआ; कथित; कहा हुआ 4. अभिव्यक्त।
उच्चलन (सं.) [सं-पु.] 1. गमन 2. रवाना होना 3. जाना।
उच्च वर्ग (सं.) [सं-पु.] 1. समाज का सबसे अधिक धनी तथा समृद्ध वर्ग; (अपर क्लास) 2. अभिजात्य वर्ग।
उच्चस्तरीय (सं.) [वि.] ऊँचे स्तर का; श्रेष्ठ कोटि का।
उच्चस्थ (सं.) [वि.] 1. ऊँचे स्थान या पद पर आसीन 2. ऊँचाई पर अवस्थित 3. जो ऊँचाई पर हो।
उच्चांक (सं.) [सं-पु.] उच्च अंक; उच्च मान।
उच्चांतरीय (सं.) [सं-पु.] सागर के मध्य तक निकला हुआ विस्तृत भू-भाग; शैल खंड या पर्वत।
उच्चांश (सं.) [सं-पु.] 1. (ज्योतिष) उन्नतांश 2. उन्नत कोण।
उच्चाकांक्षा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. औरों से आगे बढ़ने की आकांक्षा 2. कोई बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य करने की अभिलाषा; महत्वाकांक्षा; (ऐंबिशन)।
उच्चाकांक्षी (सं.) [वि.] जिसके मन में उच्चाकांक्षा हो; महत्वाकांक्षी; (ऐंबिशस)।
उच्चाटन (सं.) [सं-पु.] 1. एक तांत्रिक प्रयोग; तंत्र के अभिचारों में एक कर्म; तंत्र प्रक्रिया के द्वारा किसी के चित्त को किसी व्यक्ति, स्थान या भाव से हटाने का प्रयत्न करना 2. विराग; उदासीनता या विरक्ति होना 3. उचाड़ना।
उच्चाटित (सं.) [वि.] 1. जिसे उखाड़ा गया हो 2. जिसके ऊपर उच्चाटन का प्रयोग किया गया हो।
उच्चादर्श (सं.) [सं-पु.] उच्च आदर्श; उच्च मानदंड।
उच्चाधिकारी (सं.) [सं-पु.] वह अधिकारी जो किसी ऊँचे पद पर हो।
उच्चाभिलाषा (सं.) [सं-स्त्री.] उच्च आकांक्षा; ऊँची कामना।
उच्चाभिलाषी (सं.) [वि.] ऊँची अभिलाषावाला; उच्चाकांक्षी।
उच्चायुक्त (सं.) [सं-पु.] 1. राष्ट्रमंडल के सदस्य राज्यों में किसी राज्य की तरफ़ से दूसरे राज्य के पास भेजा जाने वाला राजनयिक प्रतिनिधि 2. उच्चायोग का प्रधान; (हाई कमिश्नर)।
उच्चायोग (सं.) [सं-पु.] 1. राष्ट्र मंडल के सदस्यों का दूतावास 2. उच्चायुक्त का कार्यालय जो दूतावास के समान राजकीय संस्थान होता है 3. उच्चायुक्त और उसके सभी कर्मचारी; (हाई कमीशन)।
उच्चारण (सं.) [सं-पु.] 1. शब्दों या उसकी ध्वनियों को मुख से निकालने या बोलने का ढंग; शब्द को मुख से बोलना।
उच्चारणाभ्यास (सं.) [सं-पु.] 1. वर्ण, शब्द, पद, वाक्य या वाक्यांश के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास 2. बोलने का अभ्यास।
उच्चारित (सं.) [वि.] उच्चरित।
उच्चालक (सं.) [सं-पु.] (किसी व्यक्ति या वस्तु को) ऊपर ले जाने वाला; पद या स्थान में ऊपर उठाने वाला।
उच्चावच (सं.) [सं-पु.] भूतल की ऊँच-नीच। [वि.] 1. ऊपर नीचे; ऊँचा-नीचा; विषम 2. छोटा बड़ा; विविध; विभिन्न।
उच्चासन (सं.) [सं-पु.] उच्च आसन या स्थल; उच्च पद; बड़ा पद।
उच्चित्र (सं.) [वि.] जिसपर बेल-बूटे या अन्य आकृतियाँ बनाई गई हों।
उच्चैःश्रवा (सं.) [सं-पु.] (पुराण) समुद्रमंथन के समय निकले रत्नों में से एक वह घोड़ा जो सात मुँहों और ऊँचे या खड़े कानोंवाला था तथा जिसे इंद्र ने अपने पास रखा था 2. इंद्र का सफ़ेद घोड़ा। [वि.] 1. जिसके कान लंबे हों 2. ऊँचा सुनने वाला।