उद्रुज (सं.) [वि.] 1. तोड़ने वाला 2. नष्ट करने वाला 3. जड़ खोदने वाला।
उद्रेक (सं.) [सं-पु.] 1. अधिकता; प्रचुरता 2. बढ़ती; वृद्धि 3. आरंभ; उपक्रम 4. प्रमुखता 5. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का अलंकार जिसमें किसी वस्तु के गुण या दोष के आगे कई गुणों या दोषों के मंद पड़ने का वर्णन होता है।
उद्वपन (सं.) [सं-पु.] 1. दान 2. बाहर निकालना या फेंकना 3. उड़ेलना 4. हिलाकर गिराना।
उद्वर्त (सं.) [वि.] 1. काम में लेने के बाद जो शेष बचा रहे 2. अतिरिक्त; फालतू 3. अंश 4. जितना आवश्यक हो उससे अधिक 5. आय-व्यय का ऐसा ब्योरा जिसमें व्यय की अपेक्षा आय अधिक दिखाई गई हो। [सं-पु.] 1. उबटन 2. उबटन की मालिश।
उद्वर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर उठाना 2. उत्थान 3. अभ्युदय 4. उबटन; लेप आदि लगाना 5. वृद्धि; वर्धन।
उद्वर्धन (सं.) [सं-पु.] 1. विस्तार; फैलना 2. बढ़ना; वृद्धि; वर्धन 3. दबी हुई हँसी।
उद्वस (सं.) [वि.] 1. लुप्त 2. रिक्त 3. अवसित 4. मधु निकाला हुआ (छत्ता)। [सं-पु.] निर्जन स्थान।
उद्वहन (सं.) [सं-पु.] ऊपर की ओर उठाना; खींचना या ले जाना; सँभालना।
उद्वांत (सं.) [सं-पु.] उल्टी; कै; वमन। [वि.] वमन किया हुआ; उगला हुआ।
उद्वासन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान पर बसे हुए व्यक्ति को कष्ट पहुँचाकर उससे उसका निवासस्थान छुड़ाना; खदेड़ना या भगाना; (डिस्प्लेसमेंट) 2. उजाड़ना 3. मारना; वध करना 4. यज्ञ के पहले आसन बिछाना।
उद्वासित (सं.) [वि.] 1. जिसे अपने निवास स्थान से मारपीट कर भगा दिया गया हो 2. जिसका निवास स्थान नष्ट कर दिया गया हो; (डिस्प्लेस्ड)।
उद्वाहन (सं.) [सं-पु.] 1. दूर करना 2. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने का कार्य 3. जोते हुए खेत को फिर से जोतना 4. सँभालना।
उद्विग्न (सं.) [वि.] घबराया हुआ; परेशान; बेसब्र; अधीर; खिन्न; विचलित; आकुल; व्याकुल; चिंतित।
उद्विग्नता (सं.) [सं-स्त्री.] आकुलता; घबराहट; बेचैनी खिन्नता; व्याकुलता।
उद्वीक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर देखना 2. नज़र 3. आँख।
उद्वेग (सं.) [सं-पु.] 1. तेज़ गति; तीव्र वेग 2. चित्त की आकुलता; आवेश; जोश 3. विरह से उत्पन्न दुख; विकलता; चिंता 4. भय; परेशानी 5. (काव्यशास्त्र) संचारी भावों का एक प्रकार।
उद्वेगशील (सं.) [वि.] 1. बहुत जल्दी उद्विग्न या उत्तेजित होने वाला; (नर्वस) 2. किसी चिंताजनक घटना के कारण भय या घबराहट पैदा होने पर उससे बचने का उपाय करने वाला।
उद्वेगात्मक (सं.) [वि.] दुखी; चिंताजनक।
उद्वेलन (सं.) [सं-पु.] 1. छलक कर बाहर निकलना; उफनना; नदी आदि का धारा द्वारा किनारा तोड़कर बहना; बिखरना 2. सीमा का अतिक्रमण या उल्लंघन करना।
उद्वेलित (सं.) [वि.] 1. उफनता हुआ; ऊपर से छलककर बहता हुआ 2. आवेशित; उद्विग्न; अशांत 3. आलोड़ित होना 4. खाली भाग में किसी वस्तु के विधिवत भर जाने से वस्तु का इधर-उधर बिखरना।
उद्वेष्टन (सं.) [सं-पु.] 1. घेरने की क्रिया या भाव 2. घेरा; बाड़ा 3. नितंब या पृष्ठ भाग में होने वाली पीड़ा।
उधर [क्रि.वि.] 1. उस ओर; उस तरफ़ 2. उस पक्ष में 3. 'इधर' का विलोम।
उधराना (सं.) [क्रि-अ.] 1. तितर-बितर होना; बिखरना 2. उद्दंड होकर उपद्रव या ऊधम मचाना 3. नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। [क्रि-स.] किसी को उधरने में प्रवृत्त करना।
उधार (सं.) [सं-पु.] 1. कर्ज़ या ऋण; कोई वस्तु इस प्रकार ख़रीदना या बेचना कि उसका मूल्य कुछ समय बाद दिया या लिया जाए 2. वह अवस्था जिसमें धन या कोई वस्तु जो चुका देने के वायदे पर माँगकर लिया या दिया गया हो। [मु.] -खाए बैठना : किसी काम या बात के लिए ताक लगाए रहना।
उधारी (सं.) [सं-स्त्री.] उधार लेने या देने की क्रिया या भाव। [वि.] उधार माँगने वाला।
उधेड़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. लगी हुई परतों को अलग-अलग करना; बिखेरना; उखाड़ना 2. सिलाई के टाँके खोलना; तोड़ना।
उधेड़बुन [सं-पु.] 1. कोई निर्णय लेने के पूर्व किया जाने वाला अनिर्णीत विचार-मंथन; बार-बार किया जाने वाला सोच-विचार; ऊहापोह; दुविधा की स्थिति; उलझन; असमंजस की स्थिति; चिंता।
उनंगा [वि.] नीचे की ओर झुका हुआ; नत।
उनचन [सं-स्त्री.] चारपाई के पैताने की ओर बुनावट को कसने के लिए लगाई जाने वाली रस्सी।
उनचना [क्रि-स.] खाट या चारपाई की बुनावट ढीली हो जाने पर उनचन को इस प्रकार खींचना कि उसकी बनावट कस पाए।
उनचास (सं.) [वि.] संख्या '49' का सूचक।
उनतालीस (सं.) [वि.] संख्या '39' का सूचक।
उनतीस (सं.) [वि.] संख्या '29' का सूचक।
उनमुन [वि.] मौन; शांत; चुप; ख़ामोश।
उनमेद (सं.) [सं-पु.] बरसात के आरंभ में तालाब आदि में उठने वाला एक प्रकार का विषाक्त फेन जिसे खा लेने से मछलियाँ मर जाती हैं; माँजा।
उनवना (सं.) [क्रि-अ.] 1. झुकना; लटकना 2. घिर जाना; छा जाना (बादल आदि) 3. टूटना; ऊपर पड़ना; गिरना 4. अचानक प्रकट होना।
उनसठ (सं.) [वि.] संख्या '59' का सूचक।
उनहत्तर (सं.) [वि.] संख्या '69' का सूचक।
उनासी (सं.) [वि.] संख्या '79' का सूचक।
उनींदा (सं.) [वि.] जो कुछ-कुछ नींद में हो; नींद से भरा हुआ; ऊँघता हुआ।
उन्नत (सं.) [वि.] 1. उच्च; उठा हुआ 2. विद्या, कला आदि में आगे बढ़ा हुआ 3. श्रेष्ठ; सभ्य। [सं-पु.] उठान; ऊँचाई।
उन्नतांश (सं.) [सं-पु.] 1. किसी आधार स्तर या रेखा से ऊपर की ओर का विस्तार; ऊँचाई; (आल्टिट्यूड) 2. (ज्योतिष) चंद्रमा की एक दशा।
उन्नति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उन्नत होने की अवस्था; प्रगति; उत्थान; विकास 2. (पुराण) गरुड़ की पत्नी।
उन्नतिशील (सं.) [वि.] 1. उन्नति के लिए प्रयत्न करने वाला 2. जिसमें उन्नति करने की योग्यता हो 3. जो लगातार उन्नति कर रहा हो।
उन्नतोदर (सं.) [सं-पु.] 1. चाप; वृत्तखंड आदि का ऊपर उठा हुआ कोई अंश 2. वह वस्तु जिसका वृत्तखंड उभरा हुआ हो।
उन्नमित (सं.) [वि.] 1. उन्नत किया हुआ 2. बढ़ाया हुआ।
उन्नयन (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर ले जाना या उठाना 2. उन्नति की ओर ले जाना 3. उन्नति; (प्रमोशन)। [वि.] ऊपर की ओर उठे नेत्रों या आखों वाला।
उन्नाद (सं.) [सं-पु.] 1. शोरगुल; हो-हल्ला; कलरव; गुंजन 2. चिल्लाहट।
उन्नाब (अ.) [सं-पु.] आयुर्वेदिक औषधि में उपयोगी बेर की जाति का एक सूखा फल।
उन्नायक (सं.) [वि.] ऊँचा करने वाला; उन्नति की ओर ले जाने वाला।
उन्नायन (सं.) [सं-पु.] 1. उठाना; उन्नत करना 2. सुधार। [वि.] जिसकी आँखें ऊपर उठी हों।
उन्निद्र (सं.) [वि.] 1. निद्रारहित 2. जिसे नींद न आई हो 3. खिला हुआ; विकसित। [सं-पु.] 1. एक रोग जिसमें रोगी को नींद बहुत कम या बिलकुल नहीं आती है; (इंसॉमनिया)।
उन्नीत (सं.) [वि.] 1. ऊपर चढ़ाया, पहुँचाया या उठाया हुआ 2. ऊपर की कक्षा में पहुँचाया हुआ 3. किसी बड़े पद पर पहुँचाया हुआ; (प्रमोटेड)।
उन्नीस (सं.) [वि.] संख्या '19' का सूचक।