उलूक (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लू नाम का पक्षी; घुग्घू 2. इंद्र 3. कणाद ऋषि का एक नाम।
उलूक दर्शन (सं.) [सं-पु.] कणाद ऋषि का दर्शन, जो वैशेषिक दर्शन कहलाता है।
उलूखल (सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का बना एक लंबा गहरा बरतन जिसमें मूसल नामक मोटे लंबे सोंटे से अनाज मसाले आदि कूटे जाते हैं; ओखली; ऊखल 2. खल; खरल।
उलूम (अ.) [सं-पु.] (इल्म का बहुवचन) अनेक प्रकार के इल्म या शास्त्र; विद्याएँ।
उल्का (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आकाशीय पिंडों से टूटकर धरती पर आ गिरने वाले पत्थरों या चट्टानों जैसे खंड जिनके धरती के वातावरण में प्रवेश करने पर घर्षण के कारण प्रकाश की लकीर-सी बन जाती है; टूटते हुए तारे; (मीटिऑर) 2. प्रकाश के लिए जलाई गई लकड़ी; मशाल।
उल्कापात (सं.) [सं-पु.] 1. आकाश से उल्काओं का गिरना 2. तारा टूटना 3. {ला-अ.} उत्पात; विघ्न बाधा।
उल्काश्म (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी पर गिरी हुई उल्का जो पत्थरों जैसी दिखाई देती है।
उल्टा-सीधा [क्रि.वि.] अस्त-व्यस्त; इधर-उधर, जैसे- सारा कमरा उलटा-सीधा हो गया 2. बकवास; अनुचित ढंग से बोलना, जैसे- वह कुछ भी उलटा-सीधा बोलता रहता है।
उल्था [सं-पु.] एक भाषा से दूसरी भाषा में किया गया अनुवाद; भाषांतर; तरजुमा; (ट्रांसलेशन)।
उल्फ़त (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह मनोवृत्ति जो किसी को बहुत अच्छा समझकर सदा उसके साथ या पास रहने की प्रेरणा देती है; प्रेम; प्यार; इश्क; प्रीति 2. दोस्तों या मित्रों में होने वाला पारस्परिक संबंध; मित्रता; दोस्ती; याराना।
उल्लंघन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी निश्चित व्यवस्था, निर्देश, नियम या विधि के विरुद्ध जाना 2. अपने लिए हुए निश्चय या प्रतिज्ञा को तोड़ना 3. सीमा का अतिक्रमण करना; लाँघना।
उल्लंघित (सं.) [वि.] 1. जिस बात या आज्ञा का जान-बूझकर पालन न किया गया हो 2. वह अधिकार या कार्यक्षेत्र जिसमें अनुचित रूप से प्रवेश किया गया हो।
उल्लसन (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लसित होना; अत्यधिक प्रसन्न होना 2. चमकना 3. सुशोभित होना 4. आनंद के कारण होने वाला रोमांच।
उल्लसित (सं.) [वि.] 1. मुदित; प्रफुल्लित; आनंदित 2. प्रकाशित; चमकता हुआ; निकला हुआ (खड्ग) 3. पुलकित; रोमांचित।
उल्लाप (सं.) [सं-पु.] 1. चापलूसी; चाटुकारी 2. अपमानकारक शब्द 3. चीख-पुकार; आर्तनाद 4. रोग या भावावेश के कारण परिवर्तित स्वर 5. ऊँचे स्वर से बुलाना; पुकारना।
उल्लापक (सं.) [वि.] 1. उल्लाप करने वाला 2. ख़ुशामदी; चाटुकार।
उल्लाला (सं.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उल्लास (सं.) [सं-पु.] 1. हर्ष; प्रसन्नता; आनंद 2. प्रकाश; झलक; चमक 3. ग्रंथ का अध्याय, पर्व या प्रकरण 4. रोमांच; पुलक 5. एक अलंकार जिसमें एक के गुण-दोषों से दूसरे के गुण-दोषों को बतलाया जाता है 6. ग्रंथ का एक भाग।
उल्लासक (सं.) [वि.] 1. प्रसन्नता या ख़ुशी देने वाला 2. उल्लास या हर्ष उत्पन्न करने वाला।
उल्लिखित (सं.) [वि.] 1. जिसका उल्लेख पहले हो चुका हो 2. पत्थर या अन्य किसी कठोर सतह पर खोदकर चित्रित किया हुआ; उत्कीर्ण 3. लिखित; चित्रित।
उल्लू (सं.) [सं-पु.] 1. उलूक पक्षी जो प्रायः उजाड़ जगहों में रहता है तथा जिसे दिन में दिखाई नहीं देता; धन की देवी लक्ष्मी का वाहन 2. {ला-अ.} बहुत मूर्ख व्यक्ति; बेवकूफ़। [मु.] -सीधा करना : अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
उल्लेख (सं.) [सं-पु.] 1. वर्णन; चर्चा; ज़िक्र 2. लिखने की क्रिया; लिखाई; लिखना 3. चित्र खींचना 4. (साहित्य) एक अलंकार जिसमें विषय या द्रष्टा के भिन्न होने पर एक ही वस्तु के भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई देने का वर्णन होता है।
उल्लेखन (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लेख करना 2. लिखना या वर्णन करना 3. चित्र आँकना।
उल्लेखनीय (सं.) [वि.] 1. जिसका उल्लेख करना आवश्यक या उचित हो; उल्लेख करने योग्य 2. लिखे जाने के योग्य।
उल्लेख्य (सं.) [वि.] उल्लेखनीय।
उल्लोल (सं.) [वि.] अति चंचल। [सं-पु.] लहर; हिलोर; तरंग।
उल्व (सं.) [सं-पु.] 1. वह झिल्ली जिसमें बच्चा बँधा हुआ गर्भाशय से निकलता है, आँवल 2. गर्भाशय।
उशीर (सं.) [सं-पु.] गाँड़र नामक एक प्रकार की घास की जड़ जो अत्यंत सुगंधित होती है और जिसे सुखाकर अनेक कामों में लाया जाता है; खस जिसकी चिलमन (चिक), शरबत आदि बनते हैं।
उषसी (सं.) [सं-स्त्री.] संध्या का समय; सांध्य वेला।
उषा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सुबह होने के कुछ पहले का मंद प्रकाश; भोर; प्रभात; तड़का; ब्रह्म वेला 2. अरुणोदय की लाली 3. बाणासुर की कन्या जिसका विवाह अनिरुद्ध से हुआ था।
उषाकाल (सं.) [सं-पु.] सुबह या भोर की बेला; प्रभात; तड़का; सवेरा।
उषागान (सं.) [सं-पु.] सुबह के समय होने वाला गायन; प्रभाती।
उष्ट्र (सं.) एक ऊँचा चौपाया जो सवारी और बोझ लादने के काम आता है और अधिकतर रेगिस्तान में पाया जाता है; ऊँट।
उष्ण (सं.) [ वि.] 1. जो ताप उत्पन्न करे; गरम; तप्त 2. गरम तासीर वाला; तीखा 3. चतुर 4. जो क्रोध, प्रेम आदि भावों के प्रभाव में हो। [सं-पु.] 1. ग्रीष्म ऋतु 2. धूप 3. प्याज़ 4. गहरी लंबी साँस।
उष्ण-कटिबंध (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी का वह भूभाग जो कर्क और मकर रेखाओं के बीच में पड़ता है तथा जिसमें बहुत अधिक गरमी पड़ती है; (ट्रॉपिक्स)।
उष्णता (सं.) [सं-स्त्री.] तपन; गरमी; ताप; उष्ण होने का गुण या भाव।
उष्णांक (सं.) [सं-पु.] दे. उष्मांक।
उष्णीष (सं.) [सं-पु.] 1. पगड़ी; साफा 2. मुकुट; ताज।
उष्म (सं.) [सं-पु.] दे. उष्मा।
उष्मज (सं.) [सं-पु.] 1. गंदगी से पैदा होने वाले कीड़े, जैसे- खटमल, मच्छर 2. पसीने से उत्पन्न कीट, जैसे- जूँ। [वि.] गरमी से उत्पन्न।
उष्मांक (सं.) [सं-पु.] ताप की इकाई; कैलोरी।
उष्मा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ताप; गरमी 2. धूप।
उष्माघात (सं.) [सं-पु.] कड़ी धूप से होने वाला विकार; ग्रीष्माघात; लू-लगना; (हीटस्ट्रोक; सनस्ट्रोक)।
उस (सं.) [सर्व.] 1. (व्याकरण) "वह" सर्वनाम का तिर्यक रूप अर्थात किसी परसर्ग के पहले आने वाला रूप, जैसे- उसने, उसका, उससे आदि 2. एक सार्वनामिक विशेषण।
उसकन (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार की छाल या घास जिससे बरतन माँजते हैं; जूना; कूचा।
उसनना [क्रि-स.] उबालना; पकाना।
उसाँस (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर को खींची गई गहरी साँस; उच्छवास; उसास 2. किसी मानसिक कष्ट के कारण ली गई गहरी साँस।
उसारना [क्रि-स.] 1. हटाना; दूर करना; टालना 2. बनाकर खड़ा या तैयार करना 3. बाहर निकालना।
उसास (सं.) [सं-स्त्री.] दे. उसाँस।
उसूल (अ.) [सं-पु.] सिद्धांत; नियम।
उसूलन (अ.) [क्रि.वि.] नियम या कायदे के अनुसार; सिद्धांततः।
उसूली (अ.) [वि.] 1. उसूल संबंधी; उसूल का 2. सैद्धांतिक 3. उसूल का पालन करने वाला।
उस्तरा (फ़ा.) [सं-पु.] बाल मूँड़ने का तेज़ धार वाला उपकरण; नाई की छुरी।
उस्ताद (फ़ा.) [सं-पु.] 1. फ़ारसी और उर्दू में गुरु के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द 2. फ़न में प्रवीण; दक्ष; चतुर जैसे- वे अपने फ़न के उस्ताद हैं 3. गायन, नृत्य आदि कलाओं की शिक्षा देने वाला।
उस्तादी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उस्ताद या गुरु होने की क़ाबिलियत 2. शिक्षण-वृत्ति 3. {व्यं-अ.} चतुराई; चालाकी; धूर्तता।
उस्तानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उस्ताद की पत्नी; गुरुआइन 2. शिक्षिका; अध्यापिका।
उहूँ [अव्य.] मुँह लगभग बंद करके उच्चरित ध्वनि जिसका आशय असहमति या इनकार सूचक होता है।